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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


अपने को संयत करते हुए, मैंने कहा, 'धत्त्! आपने कहाँ से, मेरे चेहरे पर रंग देख लिया-'

मैंने मारे शर्म के अपना मुँह फेर लिया।

मेरा मुड़ा हुआ चेहरा, सिर से पाँव तक लाज से आरक्त देखकर, अफ़ज़ल और ज़्यादा मुग्ध हो उठा।

मेरे प्रति आँखों में मुग्धभाव भरकर उसने कहा, 'आपका ज़रा हाथ तो देखू, झूमुर!' अफ़ज़ल उठकर, मेरे पैरों तले आ बैठा।

उसने मेरी हथेली, अपने हाथों में ले ली। मेरे समूचे तन-बदन में मानो बिजली दौड़ गई। मेरा हाथ हौले से दबाते हुए, वह हँस पड़ा। मैं आँखें मूंदे-मूंदे अपने सर्वनाश के ख्याल में डूब गई। मुझे लगा, हारुन खिड़की-दरवाजे की किसी सूराख से यह नज़ारा देख रहा है। वह दृश्य मैं केवल अपने लिए सँजोए रखना चाहती थी। उस दृश्य को मैं दुनिया में किसी के साथ भी नहीं बाँटना चाहती।

अफ़ज़ल ने मेरे हाथ, अपने हाथों में तक़दीर की लकीरें पढ़ने के लिए नहीं लीं। वह मेरा हाथ थामे-थामे, उस तस्वीर के बारे में, उस तस्वीर के पीछे की घटनाओं के बारे में बताता रहा, मानो मैं वर्षों से उसकी दोस्त हूँ। मैं लगभग भूल ही गई कि हारुन नामक, मेरा कोई पति है, ससुराल के नाम पर मेरा कोई घर है और उस से निकलकर, किसी ज़वान मर्द की जीवनगाथा सुनना, मेरा काम नहीं है।

अचानक मुझे उठना पड़ा। अफ़ज़ल के कमरे से निकलकर मुझे, सीधे सदर दरवाज़े की तरफ़ आना पड़ा। दरवाज़ा खोलकर, बाहर निकल आना पड़ा। पीछे मुड़कर देखने की तीखी चाह के बावजूद मैंने अपने को बरज़ दिया। न चाहते हुए भी मुझे सिर पर आँचल खींच लेना पड़ा और सीढ़ियाँ चढ़कर, लक्ष्मी-बहू की तरह दूसरी मन्ज़िल तक लौट आना पड़ा।

सेवती के घर में पहली बार गई थी, सासजी यह ज़रूर पूछती कि सेक्ती से क्या बातें हुईं, उसने क्या-क्या खिलाया, वगैरह-वगैरह! मैं मन-ही-मन उस वगैरह-वगैरह के जवाब सजा रही थी। लेकिन शुक्र है, कुमुद और सोहेली फूफी की वजह से किसी तरह जान बच गई। इस वक़्त मेरी सासजी सेवती से कहीं ज़्यादा कुमुद में और कुमुद से भी बढ़कर सोहेली से मगन हो उठी थीं। कुमुद और सोहेली, सासजी की दो ननदें थीं। ननद-भौजाई में जोरदार गपशप छिड़ गई थी।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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