लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


अचानक अफ़ज़ल बोल उठा, 'वह औरत मेरा सिर्फ सपना है। सिर्फ कल्पना! और कुछ नहीं।'

'अच्छा, सच?'

'हाँ, सच!'

अफ़ज़ल की उदास आँखें खिड़की पर जा टिकीं। मुझे लगा, वह उसी औरत के बारे में सोच रहा है। उसे याद कर रहा है!

उस औरत को उसने कहीं खो दिया! किसी पहाड़ या अरण्य के किनारे! सूर्यास्त के रंग जैसे धीरे-धीरे धुआँ-धुआँ अँधेरे में विलीन हो जाते हैं, उसी तरह वह औरत भी कहीं विलीन हो गई। उसकी दुनिया काफ़ी कुछ दक्षिण भारतीय औरतों जैसी! यह औरत महज सपना या कल्पना नहीं हो सकती।
अफ़ज़ल की उदास युगल आँखें अब मेरी आँखों में झाँकने लगीं। मेरी आँखों में वह कहीं उस औरत की आँखें तो नहीं देख रहा है? या मैं कोई नहीं हूँ, सिर्फ दूसरी मन्ज़िल की बहू के अलावा! उसके समक्ष मेरा और कोई परिचय नहीं है।

लेकिन मुझे चौंकाते हुए, उसने कहा, 'आप तो झूमुर हैं, हैं न?

'हाँ, मैं झूमुर ही हूँ।'

अर्सा हुआ, मैंने अपना नाम नहीं सुना। अर्सा हुआ, किसी ने मुझे सिर्फ नाम से नहीं पुकारा। अनीस ने जब मुझे 'झूमुर भाभी' कहकर पुकारा था, मैं अचकचा गई थी। हारुन भी शायद ही कभी 'झूमुर' नाम से पुकारता हो। ब्याह के बाद, हारुन मुझे अक्सर इसी तरह बुलाता था-कहाँ हो, सुनती हो! कहाँ गईं! सुनो-! झूमुर नाम मुझे हौले-हौले सिर्फ झुलाता रहता है। बचपन में मैं और नूपुर पाँवों में घुँघरू बाँधकर नाचा करती थी-मन मोऽर मेघों का संगी...आज धान-खेत में धूप-छाँह की आँखमिचौनी! वह झूला आज भी तन-बदन-मन में झकोरे देता रहता है।

दूसरी मन्ज़िल की लक्ष्मी बहू के अलावा भी, मेरा कोई परिचय है, मैं 'झूमुर' नामक एक औरत भी हूँ, अफ़ज़ल ने मेरी उस विस्मृति को आवाज़ देकर गानो जगा दिया हो। लम्बी और गहरी नींद से जागने के बाद, जैसा लगता है, मुझे बिल्कुल वैसा ही लग रहा है! इस वक़्त मन बेहद चुस्त और तरोताज़ा हो आया।

'देखिए, देखिए, झूमर, शाम का आलोक आपके चेहरे पर कितना असाधारण लग रहा है! मेरा जी चाह रहा है, आपको और-और देर तक देखू। जब यह आलोक खिसक जाएगा, उसके बाद किसी और तरह का आलोक आपके चेहरे पर विराजेगा। सिर्फ चेहरे पर ही नहीं, समूचे तन-बदन पर प्रकाश फैल जाएगा।

अफ़ज़ल जब बोलता रहता था, तव वह मानो यहाँ नहीं होता था, सेवती के कमरे में बैठा हुआ नहीं होता था। उसकी आवाज़ मानो किसी गहन अरण्य से आ रही हो। उसकी कही हुई बातें गूंजती रहती थीं! मैं बार-बार सुनती रही।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book