उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
6
हारुन मेरा गर्भपात कराने के लिए, धानमंडी की ही किसी क्लिनिक में ले जा रहा था। घरवालों को यही मालूम था कि वह अपने किसी दोस्त से मिलने जा रहा था।
जाने से पहले मैंने हारुन को समझाने की कोशिश की, 'देखो, यह हमारी पहली सन्तान है। तुम ऐसा काम मत करो।' मैंने उसे बार-बार समझाया, 'तुम गलत कर रहे हो। अपने बीज पर ख़ुद ही शक कर रहे हो। फ़िजूल ही किसी गलतफहमी को बढ़ावा दे रहे हो। तुम मेरी चरम बेइज़्ज़ती कर रहे हो, हारुन!'
मेरी आर्त गुहार पर भी वह नहीं पिघला।
मैंने उसके दोनों हाथ, अपनी हथेलियों में लेकर, उससे विनती की, 'सुनो, और चाहे जो करो, यह काम तुम मत करो।'
उसने झटककर अपना हाथ छुड़ा लिया।
मुझे आलमारी की तरफ धकेल दिया, ताकि मैं साड़ी बदल लूँ और क्लिनिक चलने के लिए तैयार हो जाऊँ।
आलमारी का पल्ला थामे-थामे मैं फफक-फफककर रो पड़ी।
हारुन ने मेरे बदन पर लिपटी साड़ी खींचकर खोल डाली।
वह कर्कश आवाज़ में दहाड़ उठा, 'झटपट साड़ी पहनो, देर हो रही है।'
हारुन का एक हाथ खींचकर, मैंने अपने पेट पर रखते हुए कहा, 'यह तुम्हारा ही बच्चा है, और किसी का नहीं। मेरा यकीन करो। तुम अपने ही बच्चे को मार डालना चाहते हो?'
'हाँ, चाहता हूँ।' हारुन ने सख्त लहज़े में जवाब दिया।
'यह मेरा भी बच्चा है। मेरा क्या उस पर कोई हक़ नहीं है? मैं बच्चा गिराने नहीं जाऊँगी, हरगिज़ नहीं जाऊँगी।'
हारुन की वही एक रट! मुझे जाना होगा!' जाना ही होगा। मैं उसकी बीवी हूँ। वह जो भी हुक्म करे, मुझे पालन करना होगा। करना ही होगा।'
अन्त में ब्लाउज़-पेटीकोट में ही मैं रोते-बिलखते हुए, हारुन के पाँवों में लोट गई, 'मैंने तुमसे कहा न, तुम हमारे बच्चे को नहीं मार सकते। ऐसा भयंकर गुनाह मत करो।'
हारुन ने मेरे हाथ झटक दिए और अपने पाँव हटाते हुए दुबारा कहा, 'हुआ! बहुत हुआ! नाटक मत करो।'
शुरू से लेकर अन्त तक, मेरे साथ अपने रिश्ते को, हारुन ने नाटक ही समझ लिया।
|