उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
2
सुबह-सुबह हारुन जब दाँत माँज रहा था, तभी, उसके सामने ही, बाथरूम में जाकर उल्टी की। हारुन ने दाँत माँजना बीच में ही रोककर, एक हाथ से मुझे पीछे से थाम लिया और दूसरे हाथ से मग़ में पानी भरकर सामने कर दिया। उल्टी करके, मैंने उसके कन्धे पर सिर टिका दिया! मारे थकान के मेरी आँखें मूंद आईं। मुझे बिस्तर पर लिटाकर, वह मेरे लिए पानी ले आया, साथ में पैरासिटामॉल की दो गोलियाँ और मॉटिलन की गोली भी!
दवा आगे बढ़ाते हुए, उसने हड़बड़ी मचाते हुए कहा, 'लो, जल्दी से खा लो तो।'
'यह सब खाने से क्या उल्टियाँ बन्द हो जाएँगी?'
'हाँ, ज़रूर बन्द हो जाएँगी।'
दवा लेकर, मैं लेटी रही। आँखें मूंदकर नहीं, आँखें खोले-खोले मैं देखती रही और हारून के नहाने की आवाजें सुनती रही। मैंने देखा, हारुन तौलिया लपेटकर बाथरूम से निकलकर, कमरे में आया। उसने दफ्तर जाने के लिए शर्ट-पैन्ट पहनी, टाई बाँधी, बदन पर सेन्ट छिड़का।
वह जब जूते पहन रहा था, मैंने कहा, 'मुझे यह सब कोई और ही लक्षण नज़र आ रहा है।
'और लक्षण, मतलब?'
'लगता है, अब बच्चा-बच्चा...'
'धत्त्!
मैं अवाक् आँखों से उसकी व्यस्तता देखती रही। आज वह दफ्तर जल्दी जा रहा था। दोपहर का लन्च भी वह साथ नहीं ले जा रहा था। आज उसके दफ्तर का एक सहकर्मी उसे 'कस्तूरी' में लन्च करानेवाला था। मैं दरवाजे तक उसके पीछे-पीछे गई। जब वह नज़रों से ओझल हो गया, तो दरवाज़ा बाद करके, मैं दुबारा बिस्तर पर आ लेटी। मैं सोचती रही, हारुन ने क्या कभी, किसी की जुबानी नहीं सुना कि पेट में बच्चा आते ही, सिर चकराने लगता है, उल्टियाँ होती हैं? बत्तीस साल उम्र हुई। बत्तीस साल उम्र में इन लक्षणों की उसे जानकारी न हो, यह कैसी बात? हारुन मुझे कभी इतना वुद्धिहीन नहीं लगा। बुद्धि के सहारे ही वह मुझे हासिल करने के लिए आगे बढ़ा था। ऐसा न होता कि शिल्पकला अकादमी में आयोजित जिस लड़के की झलक-भर देखी हो, उसे भूल जाना चाहिए था। इस किस्म के लड़के तो विश्वविद्यालय के अहाते, रास्ता-घाट, रेस्तराओं में अक्सर नज़र आते हैं, लेकिन उस लड़के को याद करने की मैं अवश हो आई थी।
एक शाम घर पर अचानक फोन पाकर मैं बेतरह चकरा गई, क्यों? 'पहचाना?' 'नहीं तो...?'
'मेरे साथ, एक दिन आपकी भेंट हुई थी। आपने बात भी की थी...।'
'हाँ, हुई होगी! हाट-बाजार में अनगिनत लोगों से मेरी बात होती है। अपना नाम तो बताएँ-' मैंने नाराज लहजे में कहा।
ऐसे उड़ते-पुड़ते लोगों के फोन अक्सर ही आते रहते थे और मुझे तंग करते ही रहते थे।
'नाम बताकर क्या फ़ायदा बताइए? इस देश में हज़ारों हारुन बसते हैं। कम-से-कम दस हारुन का नाम तो ज़रूर आपने भी सुन रखा होगा।'
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