उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
11
हसन के साथ उस दुर्घटना के बाद, हारुन पहले से ज्यादा व्यस्त हो गया है। इलाज़ वगैरह में गड्डी-गड्डी रुपयों का ख़र्च जो सिर पर आ पड़ा है। दफ्तर के बाद, वह भाई को देखने के लिए सीधा अस्पताल जाता था, उसके बाद घर लौटता था। दोपहर और शाम के वक्त घर खाली पड़ा रहता था। उस वक़्त, सेवती के यहाँ भी अफ़ज़ल के अलावा और कोई नहीं होता था। आजकल सेवती, अस्पताल से रात को घर लौट आती थी। उसकी नौकरानी, घर-द्वार की झाड़-पोंछ करके, मसाला पीसकर और कपड़े धोकर अपने घर चली जाती थी। अनवर भी घर देर से लौटता था। नीचे अफ़ज़ल अकेला होता था, ऊपर मैं भी अकेली। वैसे भरे-पूरे घर में भी मैं अकेली ही होती हूँ। अपना अकेलापन मिटाने के लिए, मैं अफ़ज़ल में डूब जाती थी। अगले दिन! उसके अगले दिन! उसके भी अगले दिन!
ससुराल में किसी को इस बात की भनक भी नहीं मिली थी कि ऊपर और नीचे के घर में क्या चल रहा है। नीचे की मन्ज़िल में अक्सर मैं सेवती से मिलने चली जाती हूँ, यह बात घर के और लोगों को तो मालूम थी। मगर हारुन को इसकी ख़बर नहीं थी। वह तो मुझे घरबन्दी बनाकर खुश था। परम तृप्त और सन्तुष्ट! मेरे इस गोपन अभिसार का अन्दाज़ा लगाना, हारुन के बूते की बात नहीं थी। पान से चूना तक न खिसकनेवाले इस घर में, मैं माथे पर पल्ला डाले, सती-साध्वी बहू हूँ। मेरी कोख में किसी पराए मर्द के वीर्य की गंध हारुन को नहीं मिली। मुझे सतीत्व के पिन्जरे में भरकर, वह जिस गंध में डूबता है, वह समझता है कि वह गंध सिर्फ़ उसकी है। उसमें किसी सुभाष, किसी आरजू की गंध नहीं है। गंध लेते-लेते रात को जब वह सख्त हाथों से मुझे जकड़ लेता है, तो इसका मतलब होता है कि उसे इस वक़्त मेरी ज़रूरत है, क्योंकि वह एक बच्चा चाहता है!
हारुन की बाँहों से अपने को मुक्त करते हुए मैं कहती हूँ, 'धत्त्!'
'क्यों? धत्त् क्यों?'
'अच्छा नहीं लग रहा है!'
'क्यों ?'
'मुझे नींद आ रही है।'
'बाद में सो लेना! इतनी जल्दी क्या है?'
'मेरी तबीयत ठीक नहीं है।'
'हुआ क्या है?'
'तल-पेट में दर्द है।'
'तो क्या हुआ? मैं बड़े एहतियात से...'
'ना!'
आज पहली बार मैंने हान को लौटा दिया। मेरे लौटा देने पर, जब हारुन ने करवट बदल ली, मैं मन-ही-म बुदबुदा उठी-मेरे समूचे तन-बदन पर अब किसी और मर्द की छुअन के निशान हैं। तुम मुझे मत छुओ। उस स्पर्श की कोई याद तुम धुंधली मत करो। तुम्हारी बीवी अब सच ही या भचारिणी हो गई है। अब तक तुम जो कल्पना किया करते थे, अब सच हो गया है। अब जिस बात का तुम्हें अन्दाज़ा नहीं है, अब वही हो रहा है। हारुन को सहवास से रोककर, मुझे अज़ीब किस्म का चैन महसूस हुआ।
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