उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
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यह मकान हारुन ने खरीदा था! बाग समेत, दो-मन्जिला मकान! मुझे इसे श्वसुर-गृह न कहकर, पति-गृह कहना चाहिए। लेकिन सास-ससुर, देवर-ननद, जिस घर में साथ रहते हों, तो उसे श्वसुर-गृह ही कहते हैं। मैं इसे श्वसुर-गृह ही कहती हूँ। मेरे इस आचरण से हारुन भी नाखुश नहीं होता। सबसे ज़्यादा खुश होती है, मेरी सासजी! वे विस्तार से बताती रहती हैं कि किसी ज़माने में मेरे ससुर का कैसा प्रबल प्रताप था।
'अरे जितना भी प्रताप था, वह नोवाखाली में था-' रानू ने बताया, 'काफ़ी प्रतापी क्लर्क जो ये।
'लेकिन, सासजी तो कहती हैं, वे बहुत बड़े अफ़सर थे?'
रानू ने होंठ विचका दिया, 'कहने को तो वे यह भी कह सकती थीं कि वे मन्त्री थे।'
दोलन अलस मुद्रा में, मुझ बीमार के पास बैठी-बैठी सुमइया की कारिस्तानी सुनाया करती है। दोलन के सास-ससुर सुमइया के बिल्कुल दीवाने हैं। उसे वे दोनों पल-भर के लिए अपने से दूर नहीं करना चाहते। सुमइया अगर एक दिन भी घर से बाहर रहे, तो दोलन के सास-ससुर की नींद हराम हो जाती है!
तो क्या उसके सास-ससुर, इन डेढ़ महीनों में नहीं सोए? मैं सोचती रही।
दोलन ने चेहरा लटकाकर कहा. 'हारुन के ब्याह की वज़ह से, उसे इस घर में आना पड़ा. इस गहस्थी में हाथ बँटाना पड़ा। हारुन ने खुद आग्रह करके, दोलन को उसकी ससराल से लिवा लाया था। नई बह को वह सारी गहस्थी समझा-बझा दे, तब अपनी ससुराल लौटे। दोलन का मन तो उस घर में पड़ा हुआ था, लेकिन भाई का घर भी तो उसे देखना था!
दोलन के कमरे से बाहर जाते ही, रानू ने कहा, 'ससुराल में उसका मन खाक पड़ा है। जाओ, जाकर पता कर लो, उसे गर्दनिया देकर, ससुरालवालों ने निकाल बाहर किया है।'
'धत्त्! ऐसा क्यों होने लगा?'
'वर्ना वह इस घर में क्यों पड़ी है?'
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