उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
अफ़ज़ल एकदम से उत्तेजित हो उठा, 'अरे, ऐसी बात नहीं है, बिल्कुल नहीं है! औरतें तो प्यार करने के लिए हैं। अगर उन्हें प्यार न किया जाए, तो उन पर रोशनी पड़ी या अँधेरा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्यार करेंगे, तभी तो वह रोशनी नज़र आएगी। अरे, भई, कलाकारों के पास दो आँखों के अलावा और भी एक आँख होती है। वह उसी आँख से देखता है।'
'ब्याह कर लीजिए न! तब औरत की मोहताज़ी नहीं रहेगी-' मैंने कहा।
अफ़ज़ल दुबारा हँस पड़ा, 'ब्याह करने के लिए लड़की कहाँ है? बिना प्यार किए, देख-सुनकर किया जाने वाला विवाह, मेरे लिए मुमकिन नहीं है।'
'यह तो और भी आसान है! मुहब्बत ही कर डालें।'
'मुहब्बत करने के लिए लड़की कहाँ है?'
'ढाका में तो जाने कब से घूम-फिर रहे हैं, लगता है, कोई मिली नहीं-'
'जो मिलीं, वे पहले से ही ब्याह रचाए बैठी हैं। सभी शादीशुदा हैं, किसी की वीवी या किसी की माँ! उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाया नहीं कि स-र-ब-ना-श!'
'वह औरत...मेरा मतलब है, तस्वीर वाली वह औरत...पानी में भीगी-भीगी...वह कौन है?'
अफ़ज़ल ने लम्बी उसाँस भरी, कोई जवाब नहीं दिया।
मैं ज़वाब का इन्तज़ार करती रही। अफ़ज़ल भी समझ गया, मुझे जवाब चाहिए और मुझे यह भी अन्दाज़ा हो गया है कि वह औरत किसी की बीवी या माँ नहीं है।
'आप चाय-वाय कुछ लेंगी?'
'ना-'
हालाँकि मेरा चाय पीने का मन हो आया था, मगर मैंने मना कर दिया, क्योंकि चाय बनाने के लिए अफ़जल को ही उठकर जाना पड़ता और मुझे उसका न होना, यूँ क़रीब बैठे न होने की तकलीफ़ झेलनी पड़ेगी। ससुराल की चौहद्दी पार करके, बाहर निकल आने का मौका. मझे ज़िन्दगी में शायद फिर कभी न मिले। गैलन-गैलन चाय ढकेलने का मौका तो जीवन में मझे ढेरों मिलेंगे! दसरी मन्जिल के कैदी ज़िन्दगी से भागकर, जितनी देर भरपूर साँस ली जा सके, उतना ही फायदा है, उतनी ही जीवन-शक्ति मुझे नसीब होगी।
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