उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
तन-बदन को छेद जानेवाली, इन सब बातों के लिए, मैं हारुन को कभी माफ़ नहीं कर सकती। उसे पक्का विश्वास हो चुका है कि सुभाष और आरजू से मेरा कोई गोपन रिश्ता था। उसका यह विश्वास दूर करना, मेरे वश के बाहर की बात है। धीरे-धीरे मैं यह भी समझ गई कि उसे माफ़ करना भी मेरे वश के बाहर की बात है।
मैं इस घर से बाहर कहीं नहीं जा सकती। न अपने पापा के यहाँ, न बहन के यहाँ, न संगी-साथियों के यहाँ। पर्याप्त योग्यता के बावजूद मुझे कहीं नौकरी करने का भी हक़ नहीं है। मैंने सब कुछ क़बूल कर लिया है, क्योंकि मुझे आशंका है कि अगर मैं यहाँ-वहाँ गई और इस बीच गर्भवती भी हो गई, तो हारुन दुबारा मेरा गर्भपात करा देगा। वह एलान करेगा, मेरी कोख में किसी और का बीज है, हारुन का नहीं। अब मैं दुबारा मुजरिम बनना नहीं चाहती। अब मैं अपने बदन पर तेज़-धारदार यन्त्र-पुर्जे चलाने की इजाजत नहीं देना चाहती। अच्छा, हारुन क्या यह कभी नहीं समझेगा कि वह मुझ पर झूठमूठ शक करता है? क्या इस बात का उसे कभी अहसास नहीं होगा कि वह मेरे प्रति अन्याय करता है? उसने मेरे प्यार, ईमानदारी और मेरी सरलता का अपमान किया है। मैं हर दिन इस इन्तज़ार में रहती हूँ कि उसे अपनी भूल का अहसास हो। कोई देवशक्ति आकर, उसकी भूल सुधार दे। यह एक ऐसा अविश्वास है। जिसे कोई गवाही, कोई लिखित-काग़ज, इसे झूठा साबित नहीं कर सकता। मैं अधम, लाचार प्राणी, दुःख-क्षोभ के दर्द से सिकुड़ती रही। हारुन ने कभी मेरी तकलीफ़ छूकर देखने की कोशिश नहीं की।
हारुन को शायद यह अहसास भी नहीं है कि वह दूर जा रहा है। हर दिन मुझसे काफ़ी दूर होता जा रहा है। अपने व्यवसाय-कारोबार में डूबा, देह-भर अहंकार और भरपूर मन से आत्मगौरव में मगन, वह दूर...काफी दूर निकलता जा रहा था। मैं विस्फारित निगाहों से, हर रोज़ उसका यह दूर होते जाना देखती रही।
मुझे कोई और अपनी बाँहें उठाए-उठाए आवाज़े दे रहा था। कोई बेहद खूबसूरत! मेरे बिना उदास, मेरे अन्दर बेचैनी जगाने वाता कोई और...! इधर कुछ दिनों से मेरे गर्दन में दर्द भरी, चिनचिनाहट हो रही थी। सेवती अगर एक बार मेरी जाँच कर लेती, तो बुरा नहीं होता। मैंने मिनमिनाते लहजे में सास को अपनी तकलीफ़ बताई।
उन्होंने भी महीन आवाज़ में कहा, 'तो सेवती को खबर कर दो न! वह आकर तुम्हें देख जाए।'
ख़बर किसके जरिए भेजूँ? रसूनी बावर्चीख़ाने में मसाला पीस रही थी। चलो, 'मैं ही नीचे जाकर, उसे दिखा आऊँ।'
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