उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मेरे बिना उन लोगों की मजलिस, पहले की तरह नहीं जमती, मेरे लिए मेरी माँ काफ़ी दुःखी थीं-ये दोनों वाक्य हारुन को शायद पसन्द नहीं आए।
खत ड्रॉअर में रखते हुए मैंने कहा, 'तुमने ख़त पहले ख़ुद पढ़कर, फिर मुझे दिया है। है न?'
'क्यों? तुम्हें कोई एतराज़ है?' हारुन की भौहें सिकुड़ आईं।
'नहीं एतराज़ क्यों होने लगा? कोई एतराज़ नहीं है।'
'फिर क्या बात है?'
'खत मुझे लिखा गया है, इसलिए इस पर मेरा हक़ ज़्यादा है। लेकिन तुम मुझे यह ख़त नहीं भी दे सकते थे। मुमकिन है। मुझे पता भी नहीं चलता कि सुजीत मर गया।
'हाँऽ, मुमकिन है, तुम्हें यह खबर भी नहीं होती कि तुम्हारे बिना आरजू उदास है...उसका मन नहीं लगता।'
उसकी यह बात सुनकर मैं सिर से पाँव तक थरथरा उठी।
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