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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


बारह पायदान उतरते ही, सेवती का फ्लैट! लेकिन मुझे लगा, वह कई-कई योजन दूर रहती है। मुझे ऐसा इसलिए लगा, क्योंकि बारह सीढ़ियाँ उतरने की अनुमति हासिल करने के लिए, मुझे बारह दिन इन्तज़ार करना पड़ा। बारह घंटे आँख-कान सजग रखकर परिस्थिति का जायज़ा लेना पड़ा। जिस दिन मैं बारह सीढ़ियाँ उतरकर, बारहसाला लड़की की तरह नीचे गई, उस दिन मानो बारह वर्षों से प्रतीक्षारत किसी मन के मीत, परमप्रिय मर्द की आँखों से मेरी आँखों का मिलन हुआ हो, हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में यूँ खो गए। पल-भर में ही कई-कई मिनट गुज़र गए, हम दोनों को कोई होश नहीं था।

मुझे ही पहले होश आ गया।

पहले मैंने ही आँखें झुकाकर पूछा, 'सेवती घर पर नहीं है?'

सेवती घर पर नहीं है, यह बात मन-ही-मन, क्या मैं खुद भी नहीं जानती थी? आजकल सेवती शाम को अस्पताल जाती थी, अगली सुबह लौटती थी।

मैं ठहरी दूसरी मन्जिल की बूँघटवती, गहने-ज़ेवर में लदी, लक्ष्मी-बहू! जन्जीरों में जकड़ी लक्ष्मी-बहू! सिर झुकाए रहने वाली, लक्ष्मी बहू! इस वक्त मेरे साथ न मेरा पति था, न सास, न देवर-ननद! इस वक़्त मैं बिल्कुल अकेली थी!

उस नौजवान के गर्दन तक झूलते बाल, हवा में बेभाव लहराते हुए! शर्ट के बटन खुले हुए! अन्दर से चौड़ी छाती और काली-काली रोमावली झलकती हुई! बदन पर काली पतलून, घुटनों तक मुड़ी हुई!

'सेवती कब आएगी?'

'बस, आती ही होगी। आप बैठिए न! बस, ज़रा-सा इन्तज़ार कर लें। अफज़ल दरवाजे से हटकर खड़ा हो गया। बैठक कमरे में बेंत की चार कुर्सियाँ पड़ी हुईं! सामने छोटी-सी मेज़! बस! सेवती के आने का इन्तज़ार करने के लिए, मैं कुर्सी पर जा बैठी।

मेरी तरह, क्या अफ़ज़ल नहीं जानता कि सेवती आज रात घर नहीं लौटेगी? नहीं वह भी ज़रूर जानता होगा। यह बात बिल्कुल तय थी कि हम दोनों एक-दूसरे को भरमा रहे थे।

सिर का आँचल धीरे-धीरे ढलक गया। मैंने उसे ढलक जाने दिया।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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