उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'तुम अपनी कोख में बच्चा क्यों नहीं लेती, झूमुर?' सेवती ने पूछा।
अब लूँगी! हारुन भी बेतरह बच्चा चाहता है।'
सेवती ने दबी-दबी आवाज़ में पूछा, 'हर रात तुम दोनों में सेक्स तो होता है न?'
मैं शर्म से आरक्त हो उठी। अपना चेहरा ढंककर, मैं हँस पड़ी।
सेवती में लाज-हया नामक कोई चीज़ नहीं है। वह कुर्सी से उठकर बिस्तर पर आ बैठी।
उसने फुसफुसाकर पूछा, 'तुम्हारी माहवारी तो ठीक तरह होती है न?'
"हाँ, वह तो होती है।'
'मुझे भी होती है। चलो, ठीक है! देखते हैं, कौन पहले अपनी कोख में बच्चा पालती है? सुनो, और कोई दिन भले बाद दे देना, मगर तेरहवीं तारीख, हरगिज़ खाली मत जाने देना।'
सेवती की जुबान पर कहीं, कोई लगाम नहीं है।
'पता है मेरी माहवारी के बाद दसवें से सोलहवें दिन तक अनवर अपने दफ्तर से छुट्टी ले लेता है और मुझे सुबह-शाम नेस्तनाबूद करता रहता है। मेरे तन-बदन की नाहीं कर डालता है।'
'.................................'
'उन सात दिनों में सत्तर बार हमारा सेक्स होता है और बाकी दिन मैं आराम करती हूँ।' सेवती यह बताते हुए हँसते-हँसते लोटपोट हो गई।
मेरे दिन ऐसे ही गुजरते रहे।
हमारे घर में, नोवाखाली के गाँव से झुण्ड भर लोग आ धमके।
सासजी ने कहा, 'ये लोग तुम्हारे चचिया सास-ससुर हैं।'
सिर पर लम्बा-सा घूघट डाले, मुझे उन लोगों के गंदे-शंदे पाँव छूकर सलाम करना पड़ा। सासजी ने खिड़की की रोशनी में मुझे खड़ा करके, मेहमानों को मेरे बदन का रंग दिखाया। उन लोगों ने भी सिर हिलाया यानी रंग तो कुछ बुरा नहीं है! सासजी ने मेरा घूघट उघाड़कर मेरे लम्बे केश, उनकी आँखों के सामने लहरा दिया। मेरे बाल देखकर, वे लोग बेहद सन्तुष्ट हुए!'
'हारुन को अच्छी बहुरिया मिली है-' उन लोगों ने मन्तत्य किया।
इसके बाद सासजी खाना-पकाने के बावत, मेरी प्रशंसा-पुराण खोलकर बैठ गईं। उन्होंने बताया, रसोई में मेरा हाथ काफ़ी मँजा हुआ है! पूरे घरवालों के लिए, मैं अपने हाथों से खाना पकाती हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि इस घर में मेरा क़दम पड़ने के बाद, उन्होंने चैन की साँस ली है। अन्त में उन्होंने यह भी कहा कि अब वे अपने घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी बेटे-बहू पर सौंपकर, बेफ़िक्री से दिन गुजार रही हैं।
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