उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
अनीस के कारोबार के लिए हारुन ने क्या किया, 'कितना किया, यह पूछने पर हारुन का एक ही जवाब था-'तुम यह सब मुश्किल-मुश्किल बातें नहीं समझोगी।'
'क्यों नहीं समझूगी? अनीस बता रहा था कि तुम चटगाँव या जाने कहाँ तो उसके लिए इन्तज़ाम कर रहे हो। तुमने इस बारे में सबको बताया, मुझे क्यों नहीं?
इन्सान सबसे पहले, अपनी बीवी को बताता है।'
हारुन ने दुबारा कहा, 'यह सब जानने की तुम्हें क्या ज़रूरत है?'
'क्यों, मैं इतनी बेवकूफ़ हूँ कि तुम मुझे बताना नहीं चाहते?'
हारुन ने आँखें नचाकर कहा, 'तुम और बेवकूफ़? तुम कहाँ से बेवकूफ़ हो, भई?'
मैं मन-ही-मन खुश हो उठी।
'बेवकूफ नहीं हूँ मैं?'
'भई, तुम तो शातिर चालाक हो। चालाक न होती, तो यह काण्ड रचती?'
'कौन-सा काण्ड रचा है मैंने?'
'और कौन-सा! इतनी अफरातफरी मचाई और झटपट ब्याह कर लिया।'
'क्यों? तुम क्या मुझसे विवाह नहीं करना चाहते थे?'
'चाहता था, मगर उस वक़्त मन नहीं था। यह बात तुम भी बखूबी जानती हो।'
"उस वक़्त ब्याह करना, मेरे लिए ज़रूरी था।'
'हाँ, ज़रूरी तो था...'
'तुम्हें प्यार जो करती थी। तुम्हें अपने और क़रीब पाने के लिए...। इसके अलावा...'
'छोड़ो! छोड़ो! यह सब तुम्हारी धूर्तता थी कि तुम्हारी हरक़त को मैं अपने लिए प्यार समझ लूँ। असल में...'
'असल में क्या?'
'असल बात यह है कि सिर्फ़...और सिर्फ़ मैंने तुम्हें प्यार किया है। मैंने... सिर्फ मैंने! मैंने तुम्हारे लिए जो-जो किया, 'वह दुनिया का कोई भी मर्द नहीं कर सकता। अब मुझ पर मेहरबानी करो और मेरी आँखों में अब और धूल झोंकने की कोशिश मत करो।'
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