उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
हारुन का आटे का गोला जैसा आनन्द-रस मेरे अन्दर कोई ज्वार नहीं जगाता। डॉक्टर ने तीन महीनों के लिए जन्म-निरोध की दवा दी है, मैं वह दवा हर रोज़, नियम से ले रही हूँ।
दोलन यह देखकर ताज्जुब में पड़ गई, 'यह सब तुम क्या कर रही हो? उम्र तो कम नहीं हुई! अब बच्चे-कच्चे की राह क्यों बन्द कर रही हो?'
मैंने यथासम्भव जल्दी-जल्दी वह दवा कहीं और छिपा दी।
'तुम्हें क्या बच्चा नहीं चाहिए?'
'पता नहीं-'
'तुम अभी तक नहीं जानतीं कि तुम्हें बच्चा चाहिए या नहीं चाहिए? तुम्हारी उम्र तक औरतें तीन-चार बच्चों की माँ बन चुकी होती हैं, इसका होश है?'
मैं ध्यानमग्न मुद्रा में नाखून चबाती रही।
'माँ बनने में ही औरत की ज़िन्दगी सार्थक होती है, भाभी। भाईजान को क्या मालूम है कि तुम जन्म-निरोध की दवा ले रही हो?'
'हाँ, जानते हैं।'
'यह तो ग़ज़ब बात है।' दोलन ने कहा। सुमैया को अपने हाथों से खाना खिलाते-खिलाते, उसने दुबारा कहा, 'लेकिन हारुन को तो बच्चे का बेहद चाव है। जिस दिन सुमैया पैदा हुआ था, हारुन ने उस नन्हें शिशु को अपनी गोद में लेकर, क्या ज़ोर से ख़ुशी की किलकारी मारी थी। उसका काण्ड देखकर डॉक्टर-नौं ने तो यही समझ लिया कि अनीस के बजाए, वही उस बच्चे का बाप है।'
जन्म-निरोधक दवाएँ खाने की बात आविष्कार करने के बाद, दोलन ने यह अफ़सोसजनक खबर सासजी को जड़ दी।
बस, उसी दिन से हारुन या मुझे सामने देखते ही, सासजी सुनाने लगीं, “भई, एकाध बच्चा न हो, तो कैसे चलेगा? ब्याह हुए कम दिन तो नहीं हुए। देखो, भइया, कहीं पोते का मुखड़ा देखे बिना ही मैं स्वर्ग न चली जाऊँ।'
हारुन बेहद ख़ामोशी से उनकी फर्माइश सुनता रहता और मेरी तरफ़ देखते हुए मन्द-मन्द मुस्कराता रहता है।
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