उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
रानू को इतनी सारी बातों की ख़बर कैसे मिल जाती है, मैं समझ नहीं पाती। जब वह घर के किसी कोने में बैठी-बैठी दिन-भर सिलाई-काँटे से बुनाई में जुटी होती है, तो ऐसा लगता है, वह इस घर के सात-पाँच में विल्कुल नहीं है। लेकिन, कहाँ क्या घट रहा है, किसके मन में क्या चल रहा है, सारा कुछ उसके सामने शफ्फाक़ पानी की तरह साफ़ है; खैर, रानू की तरह, गृहस्थी की छोटी-से-छोटी बातें जानने में, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं तो हारुन का प्यार पाकर ही खुश हूँ। चलो, मान लिया कि रानू का मन होता है, यह घर छोड़कर कहीं और चली जाएँ और कहीं निर्जन में अपनी गृहस्थी बसाए। कभी मेरे भी मन में ऐसी चाह जागती थी, लेकिन धीरे-धीरे मुझे अहसास हो गया कि हारुन अपने संयुक्त परिवार के बाहर, कहीं और गृहस्थी बसाने की बात सोच भी नहीं सकता। चलो, न सोचे, अगर प्यार सलामत हो, तो बाघों के अरण्य में भी रहा जा सकता है, अगर प्यार न हो, तो भूस्वर्ग में भी नहीं!
क्लिनिक से लौटकर, मुझे तेज़ बुखार चढ़ गया। सारा तन-बदन बुख़ार में जलता रहा। हारुन बुख़ार से तपते हुए मेरे जिस्म को अपने सोने से दुबकाए रखता, मुझे दवा पिलाता, बदन सहलाता रहता, गालों को चूमता रहा और बार-बार दुलार करता रहता।
'मेरी लक्ष्मी-सोना, जल्दी से ठीक हो जाओ। मैं तुम्हें सीताकुण्ड पहाड़ की सैर कराने ले चलूँगा। तुम्हारे ठीक होते ही, मैं तुम्हें...'
'तुम मुझे...क्या?'
'देखती जाओ...! कितना कुछ...! हमारी ज़िन्दगी तो अभी शुरू हुई है...'
'अच्छा ...?'
पता नहीं दवा की वजह से या हारुन के लाड़-प्यार की वजह से, मैं स्वस्थ हो उठी। हारुन के स्पर्श ने मुझे धीरे-धीरे निरोग कर दिया।
इस घर का कोई भी बन्दा नहीं जानता कि अभी हाल ही में, मेरी और हारुन की सन्तान का खून कर डाला गया है। लोगों की नज़रो की आड़ में कोई मौत हुई है। कोई एक मौत हर रोज़ मेरे अन्दर भी उमड़-घुमड़कर रोती-बिलखती रहती है। कोई नहीं जानता, किसी को भी पता भी नहीं चलता। यहाँ तक कि हारुन जब मुझसे लिपटकर सोया रहता है या सहवास में मगन रहता है, मेरी गहराइयों में उतरकर भी, मेरे मन की हालत नहीं जान पाता। हालाँकि डॉक्टर ने पन्द्रह दिनों तक सेक्स-संबंध से दूर रहने की हिदायत दी थी, लेकिन हारुन ने चौथे दिन से ही देह-संगम शुरू कर दिया। मैं अपने पति के इस शारीरिक मिलन में बाधा नहीं देती। अर्थवान्, चरित्रवान पति के सम्भोग में बाधा, किसी भी बदचलन औरत की इतनी मज़ाल नहीं हो सकती। मेरे पति ने मेरे गुप्तांग से सन्देह का ज़हर निचोड़कर निकाल दिया है। उसने मुझे परम शुद्ध कर डाला है। शुद्ध नारी, उजले-धुले विस्तर से उठकर, पूरे कमरे में चहलकदमी करने लगी है! उस पुराने-धुराने बावर्चीखाने में, जहाँ हमेशा लहसुन और रसूनी की गंध फैली होती है, उस कोठरी में बैठे-बैठे, पति और पति के घरवालों के लिए नाश्ते की तैयारी और उसके बाद, घर-भर के लिए तरह-तरह के पकवान बनाकर जब यह शुद्ध नारी रात को सोने के लिए, अपने कमरे में आती है, तब उस शुद्ध नारी की शुद्ध देह से, उसका शुद्ध पति छेड़छाड़ करता हुआ, अपूर्व आनन्द में मगन हो जाता है।
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