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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


मेरी आँखों के आगे जमा हुआ खून, खून के गोल-गोल पिण्ड, मेरी तरफ़ हमलावर हो उठते, मानो वे मुझे पूरी तरह ढंक लेंगे। मैं शर्म से नहीं, थक्के-थक्के खून से लाल हो उठती थी। वह खून मुझे ढंक लेता था। गर्भपात के बाद हफ़्ते-भर रोग-भोग झेलकर, जव मैंने बिस्तर छोड़ा, तो वारी जाने का मन हो आया। मैं माँ-पापा से मिलना चाहती थी। हारुन के सामने मैंने इच्छा जाहिर की। उसे बताया कि कुछ दिनों के लिए मैं वारी जाना चाहती हूँ। हारुन ने सख्त एतराज़ उठाया।

'देखो, तुम कहाँ जाओगी, नहीं जाओगी, इसका फ़ैसला इस घर में लिया जाएगा। यही घर, अब तुम्हारा घर है। यहाँ के लोग ही तुम्हारे अपने हैं। अब में और मेरे रिश्तेदार, जितना तुम्हारा भला चाहते हैं, उतना और कोई नहीं चाहता। मेरा भविष्य, अव वारी के किसी बन्दे से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि मुझसे और मेरे नातेदारों से जुड़ गया है! अब तुम जितनी अपने पापा की बेटी नहीं हो, उससे ज़्यादा अपने ससुर के बेटे की बीवी हो।'

सच्ची, मुझे समझ में नहीं आता, नितान्त अपने लोग अचानक पराए कैसे हो जाते हैं। और पराए, अपने कैसे बन जाते हैं। विवाह, निश्चित रूप से विराट घटना है। यह घटना, सामाजिक रिश्तों को बदल सकती है, लेकिन क्या मन भी बदल देती है? वैसे मैंने, इसी दौरान, हारुन के रिश्तेदारों को अपना समझना शुरू कर दिया है, लेकिन वारी की यादें मैं किसी भी शर्त पर मन से नहीं मिटा पाती। मुझे अपने माँ-बाप या नूपुर, कोई भी मुझे पराए नहीं लगते। इसके बावजूद वारी जाना मेरे लिए सम्भव नहीं हुआ।

एक शाम मेरी माँ ही मेरे लिए नारियल की पट्टी, आम का अचार और ठोंगाभर अंगूर लेकर, मुझसे भेंट करने आ पहुँची। सासजी ने रसूनी को मेहमान के लिए, बैठक-घर में चाय-बिस्कुट दे जाने को कहा। रसूनी ट्रे में चाय-बिस्कुट सजाकर दे गई। माँ जितनी देर यहाँ रहीं, दोलन धाराप्रवाह सुमइया के बारे में किस्से सुनाती रही। सुमइया कब सोकर उठता है, कब दुबारा सोता है। उसे क्या खाना प्रिय है, किसी खाने को बिल्कल मँह भी नहीं लगाता। उसे कौन-कौन से खेल प्रिय हैं, टेलीविजन पर कौन-सा कार्यक्रम उसे सबसे ज़्यादा पसन्द है! दोलन सुमइया को एक कविता सुनाने के लिए कुहनियाती रही। सारा वक़्त इन्हीं सब बातों में गुज़र गया। माँ से लिपटकर अपनी कोई बात करने का मुझे मौक़ा ही नहीं मिला। मैं इस घर में कैसी हूँ, मेरा सुख-दुःख...उन्हें कुछ भी नहीं बता सकी! उन्हें अपने गर्भपात की भी ख़बर नहीं दे सकी! माँ को सिर्फ यही सूचना दी गई कि मुझे बुखार आ गया था। बस!

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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