उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
दोलन ने उदास-सा चेहरा बनाकर कहा, 'विवाह के बाद, इतनी जल्दी, यूँ बीमार पड़ना अच्छी बात नहीं है, पति का दिल उचट जाता है।'
दोलन सादे काग़ज़ की तरह निरी सफ्फ़ाक़ और सीधी-सादी लड़की थी। जब वह हँसती थी, उसके गुलाबी-गुलाबी मसूड़े झलक उठते थे। मेरी बीमारी की वजह से, हारुन का दिल अगर मुझसे चाट हो जाता है, तो दोलन को क्या फर्क पड़ता है? या वह यह चाहती है कि शोक भुगतने के बजाए पहले की तरह कमर में आँचल कसकर, जैसे गृहस्थी चला रही थी, वैसे ही सबकुछ दुबारा सम्हालती रहूँ? अगर गृहस्थी का जिम्मा मैं सम्हाल लूँ, तो उसे आराम मिले। घर के सभी लोग आराम की साँस लें। मैंने देखा है, रसूनी अगर बीमार पड़ जाती है, तो सासजी को झुंझलाहट होने लगती है। मालकिन अगर नाराज़ हो जाएँ तो वे कभी भी उसे जवाब दे देंगी, रसूनी इसी भय से बेज़ान रहती थी, खैर, मुझे कोई फ़िक्र नहीं। बल्कि सारी चिन्ता-फ़िक्र एक तरह से ख़त्म हो गई। अब कोई भी फ़िक, लेशमात्र भी मुझे स्पर्श करे, इसकी कोई वजह नहीं बची। अब कहीं, कोई प्राण नहीं, जिसका गला घोंटकर, कोई उसकी हत्या कर डाले।
मेरी बीमारी में, रानू भी मेरी खैरियत पूछने आई।
मेरे बिस्तर पर पैताने बैठकर, उसने लम्बी उसाँस छोड़ते हुए कहा, 'अरे, मुझे भी क्या कम पेट-दर्द हुआ था! लेकिन, मेरा तो इतना सेवा-जतन किसी ने नहीं किया-'
सासजी ने मेरे सामने लम्बी उसाँस तो नहीं भरी, मगर मारे परेशानी के. उनके माथे पर बल नज़र आते रहे। उन्हें यह परेशानी थी कि मैं बार-बार यूँ बीमार क्यों पड़ी रहती हूँ। उन्हें शायद यह परेशानी थी कि मेरी बीमारी की वजह से उनके दुलारे सपूत की शारीरिक प्यास नहीं मिटती होगी।
रसूनी ने ज़मीन पर अपनी पिछाड़ी टिकाते हुए कहा कि मेरे पेट पर अगर कटहल का एक पत्ता फेरकर, उस पते को आग में जला डाला जाए, तो सब कुछ पहले की तरह ठीकठाक हो जाएगा। मेरी सारी तकलीफ़ दूर हो जाएगी।
मैं मन-ही-मन बुदबुदा उठी-'अब कुछ भी पहले की तरह ठीकठाक नहीं होगा, रसूनी! जो गया, सो गया! हाँ, सिर्फ़ तकलीफ़ भर बच रही है, जो अब कभी भी नहीं जाएगी।'
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