उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
दोस्ती का रिश्ता ऐसा ही तो होता है! मर्द-औरत की भिन्नता से परे विशुद्ध दोस्ती का रिश्ता ! मैं दल-बल समेत हो-हुल्लड़ मचाने वाली लड़की! कहाँ मैं, अचानक किसी बिज़नेसमैन के इश्क में पड़ गई। वैसे उससे मेरा इश्क इसलिए नहीं हुआ था कि मुझे किसी अमीर पति की तलाश थी। हारुन जब मेरी आवाज़ पर फ़िदा हुआ था उस वक़्त मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि वह दौलतमन्द है। उसकी बातचीत का लच्छेदार अन्दाज़ आज भी जब याद करती हूँ, तो सिर से पाँव तक झुरझुरी फैल जाती है। हाँ, लच्छेदार अन्दाज़ ही तो था! मुझे उसकी पिछली तमाम बातें महज मक्कारी लगती हैं! महज कौशल! अब, हारुन उस अन्दाज़ में बातें नहीं करता। पहले की तरह प्यार और आवेग, भरे भींगे-भीगे लहज़े में!
अब तो सारा कुछ गडमड हो गया है! तमाम ख्याल तक इधर-उधर छिटक गए हैं। अच्छा, ज़िन्दगी क्या इसी तरह अचानक किसी बीहड़ आँधी-तूफान में फँस जाती है? इतने जतन से सजाई हुई ज़िन्दगी भी, न चाहते हुए भी, यूँ तितर-बितर होने लगती है?
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