उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
उसके बाद, मैंने अपनी आँखों के बचे-खुचे आँसू पोंछ लिए। पूरी ख़ामोशी से साड़ी पहनी और बेआवाज़ मुद्रा में हारुन के पीछे-पीछे क्लिनिक पहुँच गई।
ऑपरेशन थिएटर में ले जाने से पहले डॉक्टर ने दरयाफ्त किया, 'बच्चा क्यों गिरना चाहती हैं?'
कोई जवाब न देकर, मैंने अपनी निगाहें हारुन पर टिका दीं। हाँ, सारा जवाब उसी के पास तो था।
हारुन ने ही डॉक्टर के सवाल का जवाब दिया, इस वक़्त बच्चे की जिम्मेदारी निभाने में, हमें थोड़ी असुविधा है।'
'क्यों ?'
'कुछेक परेशानियाँ हैं।'
'पहला-पहला बच्चा, कोई खामख़ाह बलि देता है?'
'नहीं, देता तो नहीं। लेकिन हमारे लिए और कोई उपाय नहीं है! हम निरुपाय करुणा-सा चेहरा बनाए, हारुन ने अपनी निगाहें डॉक्टर की तरफ़ टिका दीं।
डॉक्टर ने लम्बी उसाँस भरकर, अगला सवाल किया, 'ये आपकी बीवी हैं न? या वीवी नहीं हैं?'
'हाँ, मेरी बीवी है।'
मैं उसकी बीवी हूँ, इस बयान में कहीं, कोई भूल नहीं थी। इसके बावजूद डॉक्टर ने फिर पूछा, 'जब ये आपकी बीवी हैं, तो बच्चा नष्ट करने की ज़रूरत क्यों आ पड़ी?'
हारुन हँस पड़ा। उसके होंठों पर वही रहस्यमय हँसी! मैं आशंकित हो उठी। अब शायद वह कहेगा। यह बच्चा उसका नहीं है।
अन्दर-ही-अन्दर किसी भय से काँपती-सिहरती मैं दम साधे खड़ी रही। उस निःशब्दता में कोई घृणा भी घुली-मिली थी।
निःशब्दता की काली चादर ने मुझे ढंके रखा। सिर से पाँव तक मैं बर्फ हो आई। मानो हाड़-मांस के इस आवरण के भीतर, मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। मैं अदृश्य हो गई हूँ। मानो मैं अपने जिस्म के दायरे से बाहर निकल गई हूँ। अब काफ़ी दूर, किसी की भी पहुँच से बाहर चली गई हूँ। मैं कहाँ हूँ, मुझे नहीं मालूम!'
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