उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मेरी देह हौले से लुढ़ककर, बिस्तर से फ़र्श पर आ पड़ी। कन्धे से कांचीपुरम साड़ी ढलक गया। हारुन मुझ पर शक कर रहा है! मैंने इतनी हड़बड़ी मचाकर उससे व्याह कर लिया, कुल डेढ़ महीने बाद, मैं ख़बर दे रही हूँ कि मैं माँ बनने वाली हूँ, इससे हारुन को शक़ पड़ गया कि कोख में बच्चा लेकर ही, मैंने उससे विवाह किया है। मेरी दोनों बाँहें अवश मुद्रा में झूलती रहीं। मुझमें उठ खड़े होने की बूंद भर भी ताकत नहीं बची थी। सीने के अन्दर रेगिस्तान की आँधी हहरा उठी थी। अन्दर-ही-अन्दर सारा कुछ भाँय-भाँय कर उठा। जैसे अचानक कोई तूफ़ान, मेरा बसा-बसाया घर, मेरा दालान-कोठा उड़ा ले गया हो। अब कहीं कुछ नहीं बचा। मैं तपती हुई रेत पर अकेली पड़ी हूँ। निचाट अकेली! कहीं! कोई, आदमज़ात नहीं! सारा कुछ निर्जन! वीरान!
चौबीस साला, असूर्यप्पश्या मैं, पहली बार अपने पति के साथ सोई थी। लेकिन हारुन के मन में शक के घने बादल उड़ रहे हैं। विवाह की उसी, पहली रात से ही, वह बिस्तर की चादर को काफ़ी गौर से घूरता रहा था।
मैंने पूछा भी था, 'क्या देख रहे हो?'
उसने माथे पर बल डालकर कहा था, 'चादर पर खून नहीं गिरा?'
हमारे पहले सहवास के बाद, खून क्यों नहीं टपका, यह मैं खुद भी नहीं जानती। हाँ, मेरे गप्तांग में तीखा दर्द ज़रूर होने लगा था। मारे दर्द के मैं सिकड़ आई थी। बार-बार बाथरूम में जाकर, ठण्डा पानी उडेलकर, दर्द कम करने की कोशिश की थी।
'उस दिन तुमने झूठ कहा था कि तुम्हें दर्द हो रहा है। झूठमूठ ही दर्द कम करने की दवा लेती रहीं!
हारुन की अविश्वासी निगाहों में मुझे मानो अपना चेहरा नज़र आया। उसका चेहरा देखकर अनजाने में ही मुझे भी अपने प्रति सन्देह जाग उठा। वह किस पर शक़ कर रहा है? वह तो मेरे दोस्तों में सुभाष, आरजू, चन्दना और नादिरा को ही पहचानता था। हाँ, शिप्रा को भी वह पहचानता था। ब्याह से पहले, वह मेरे संगी-साथियों के साथ काफी हो-हुल्लड़ मचाया करता था। मैं अपने साथियों के साथ
जब-तब उसके दफ़्तर में जा धमकती थी। हारुन हम सबको अपनी गाड़ी में बिठाकर, कहीं दूर-दूर सैर पर निकल जाता। सीधा गारो पहाड़ तक पहुँच जाता था। हारुन हतना ख़ुशमिज़ाज़ शख़्स था कि सुभाष और आरजू ने उसे ख़ासा पसन्द किया था। वे लोग मुझे बार-बार आश्वस्त करते रहे-'झूमुर, तुझे जन्मजात सज्जन बन्दा मिला है! इन्सान जैसा इन्सान!'
बहरहाल, मुझे किसी सज्जन-वज्जन की ज़रूरत नहीं थी। मैं तो प्यार पाकर ही सुखी थी!
मैं हारुन के साथ खुश रहूँगी। हारुन मुझे बे-हद प्यार करता है-ये तमाम वातें मेरे सभी संगी-साथियों ने खुद क़बूल की!
'झूमर की तक़दीर वाकई अच्छी है-' नादिरा ने कहा, 'मेरी भी तक़दीर में अगर हारुन जैसा कोई बन्दा जुट जाता, तो मैं फ़ौरन उसके गले में झूल जाती।'
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