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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


ये सब मन्तत्य उन लोगों ने हारुन की आड़ में ही नहीं, उसके सामने भी ज़ाहिर करते रहे। चूँकि चन्दना और नादिरा से मेरा गर्भवती होना सम्भव नहीं था, हारुन ज़रूर यही सोच रहा होगा कि इसमें सुभाष या आरजू का ही हाथ होगा। उसे भला और किस पर शक़ हो सकता है। मेरे साथ वह उन्हीं दोनों को देख रहा होगा। हारुन की अविश्वासी आँखें दुबारा मेरा चेहरा पढ़ने लगीं। वह मन-ही-मन मुझे सुभाष या आरजू के साथ, किसी निर्जन-वीरान जगह में देख रहा था। उसकी आँखें देख रही थीं, मैं संगम में लिप्त हूँ। मेरी कोख में सुभाष या आरजू का वीर्य उमड़ पड़ रहा है। मैं लापरवाह औरत, अचानक गर्भवती हो गई और तब बेहद मक़्क़ार तरीके से मैं अपने प्रेमी. हारुन को विवाह का प्रस्ताव दे बैठी और विवाह के लिए मैंने उसे लाचार कर दिया।

हारुन बिल्कुल इसी ढर्रे पर सोच रहा था। वह मुझे इन्हीं निगाहों से देख रहा था। उसकी वे पत्थर आँखें, इस वक़्त अंगारों की तरह धधकती हुई! वह धधकती हुई आँखों से मेरी तरफ़ देखता रहा। वह मानो देख रहा हो, मेरी कोख में सुभाष या आरजू के वीर्य से भ्रूण, आकार लेने लगा है! वह उस भ्रूण को धीरे-धीरे बढ़ते, बड़ा होते हुए देखता रहा। वह शिशु धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है, हाथ-पाँव फैला रहा है। उसकी आँखें खुल रही हैं! उसकी आँखें बिल्कुल आरजू जैसी हैं! पिटपिटाती हुई ! सुभाष की नाक की तरह भोथरी नाक। मैंने हारुन की निगाहों से अपने को देखने की कोशिश की। मैं एक धूर्त स्वेच्छाचारिणी हूँ। मुझे अपने पर हिकारत हो आई। हारुन ज़रूर यह सोच रहा है कि उसने किसी स्वेच्छाचारिणी से विवाह करके, उस पर करुणा की है। इस वक़्त वह अपनी उदारता और महानुभावता पर खुद ही मुग्ध हो रहा होगा। हारुन की निगाहों से अपने को देखते-देखते, अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे ख़ुद भी इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है कि सुभाष या आरजू के साथ मेरा कोई सेक्स-सम्पर्क नहीं है। पहले-पहल हारुन के साथ ही मैंने देह का गम्भीर खेल खेला है, यह बात मुझे भी झूठ लगने लगी। अब हाथों हाथ पकड़े जाने का ख़ौफ़। हारुन से अपना चेहरा छिपाने के लिए ही, मैं दौड़-दौड़कर वाथरूम में जाकर अपने को कैद कर लेती थी।

अधम हूँ मैं! पापी हूँ मैं! आईने के सामने खड़ी-खड़ी में अपने को निहारती रही। यह मैं हूँ! मैं झूमुर हूँ! गर्भवती होने के बाद, व्याह के पाठे पर बैठने वाली झूमुर! पति की आँखों में धूल झोंकने वाली बीवी हूँ मैं! मुझे हारुन पर तरस आता रहा और अपने प्रति भयंकर नफ़रत! सुभाष और आरजू के प्रति बेभाव गुस्सा! वे दोनों मुझे अपने गुप्त प्रमा नज़र आते रहे। मेरे अन्दर यह विश्वास जन्म लेने लगा कि आज रात सुभाष चहारदीवारी लाँघकर, इस घर में दाखिल होगा और मैं उसके साथ हमबिस्तर होऊँगी। हम दोनों का मिलन होगा। मुझे कहीं यह विश्वास होने लगा कि आज रात के अंधेरे में, अपने ही घर के बरामदे में आरजू से मेरी भेंट होगी। मुझे उसी बरामदे में लिटाकर, आरजू मेरी कोख में अपना बीज बो देगा। किसी को कानोंकान इसकी खबर नहीं होगी।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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