उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
कमरे का दरवाज़ा उढ़काकर, मैंने सिर पर पड़ा आँचल उघाड़ दिया।
मैं मन-ही-मन हारुन को मनाती रही-'देखो, मेरी तरफ़ देखो तो सही! देखो, यह वही साड़ी है, जो तुम बड़े प्यार से मेरे लिए लाए थे। देखो, आज मैंने वैसा ही जूड़ा बनाया है, जिसे देखकर तुम्हें लगता है कि मैं बहू-बहू नज़र आ रही हूँ। देखो, मैंने उसी रंग की बिन्दी लगाई है, जो तुम्हें पसन्द है! देखो, मैंने वही लिपस्टिक भी लगाई है, जिसे देखकर तुम कहा करते हो कि तुम्हारा दिल मुझे चूम लेने को उतावला हो उठता है। मैं तुम्हारा वही प्यार हूँ, एक बार, भर निग़ाह देखो तो सही! हौले-हौले मेरी आँखों, मेरे होठों को चूमते हुए, मेरी गर्दन, मेरी उभारों को अपने होठों से सहलाते हुए, नीचे...और नीचे उतर आओ। देखो, वहाँ हमारी गुड़िया जैसी. ..कोई सोनूमोनू सोई हुई है। वहाँ बेहद हौले से होंठ रखना, वर्ना सोनूमोनू जाग जाएगी। अच्छा, उसका चेहरा कैसा है? मेरी तरह या हारुन की तरह? अगर बेटा हुआ, तो उसका भी चेहरा-मोहरा हूबहू हारुन होगा। उसके जैसी आँखें, वैसे ही माथा, बिल्कुल वैसी ही नाक! वाह!
मैं अकेली-अकेली ही सपनों के सागर में तैरती रही। घर में अभी किसी को भी अपने गर्भवती होने की खबर नहीं सुनाई। मारे शर्म के मेरा चेहरा झुक आया। यह ख़बर हारुन ही घरवालों को सुनाए।
हारुन ने आँख खोलकर मेरी तरफ़ देखा।
मैंने उसे झकझोरते हुए पूछा, 'ए जी, बताओ न, वह देखने में कैसा होगा?'
हारुन की जुबान नहीं फूटी।
'अभी मैंने किसी को भी यह बात नहीं बताई। वारी के लोगों को भी ख़बर नहीं दी। मुझे कैसी तो शर्म लगती है...'
हारुन ने धीरे-धीरे आँखें खोली। उसकी आँखों की भाषा में पढ़ नहीं पाई। मेरे होनें की कोरों में लजाई-लजाई-सी हँसी की छुअन!
'ए-इ, बोलो न, वह देखने में किसकी तरह होगा?' मैंने फुसफुसाकर पूछा।
'..................................'
मैंन होंठ फुलाकर दुबारा कहा, 'मुझे पता है, तुम बेटा चाहते हो! वैसे बेटी भी हो, तो कोई हर्ज़ नहीं! सुनो, अगर हमारी बेटी हुई, तो मैं उसका नाम रसूंगी-मुहब्बत! तुम राज़ी हो न?'
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