उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मैंने चाय की ट्रे मेज़ पर रख दी, सिर पर आँचल खींचा और सासजी तथा दोलन को चाय की प्याली थमाई। ससुरजी बैठक-कमरे में थे। उन्हें भी चाय दे आई। अनीस बरामदे में बैठा था। उसे भी चाय पकड़ाकर, बची हुई प्याली हारुन के लिए उठा ली। वह हमारे बेडरूम में बिस्तर पर लेटा हुआ था। चाय लिए-लिए, मैं उसकी बग़ल में आ बैठी। मैंने हौले से उसकी पीठ पर हाथ रखा। उसकी पीठ धनुष की तरह टेढ़ी हो आई, मानो वह स्पर्श मेरा न हो। कोई अचीन्ही छुअन उसे तंग कर रही हो, उसकी नींद में खलल डाल रही हो। लेकिन ऐसी शाम के वक़्त हारुन तो कभी लेटा नहीं रहता। आमतौर पर, इस वक्त वह घर लौटकर, सबके साथ गपशप करता है या टेलीविज़न देखता है। इस वक्त वह अक्सर चाय नहीं पीता।
एकाध बार उसे इस वक्त चाय देने की कोशिश भी की, तो उसने कहा, 'दफ्तर में कई-कई बार चाय पीना पड़ता है। इतनी चाय सेहत के लिए जैक नहीं-' अगले ही पल, उसने मेरे कानों में फुसफुसाकर कहा, 'घर में चाय से ज़्यादा, मुझे चूमना पसन्द है।'
लेकिन अब हारुन की न तो चाय में दिलचस्पी है, न चुम्बन में।
मैंने उसके चेहरे पर झुककर पूछा, 'क्या बात है? चाय नहीं पीओगे?'
'ना-'
उसकी अनछुई चाय की प्याली में मैंने दो-तीन चूंट भरकर कहा, 'वैसे चाय मैंने बुरी नहीं बनाई-'
लेकिन हारुन मेरे इस जुमले पर भी उत्साहित नहीं हुआ कि मेरी बनाई हुई चाय बुरी नहीं है।
मैंने चाय बग़ल की मेज़ पर रख दी।
अब जाकर मैंने अपनी जुबान खोली, 'देखो, तुम्हारा यह रवैया मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है। तुम्हें हुआ क्या है, यह बताओ? मेरे साथ तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम्हें किसकी याद आ रही है? किसके लिए तुम मुझे सता रहे हो? ऐसा तो नहीं होना चाहिए था। हमने तो व्याह इसलिए किया था कि हम दोनों सुखी . हों। यह अचानक तुम गड़बड़ क्यों कर रहे हो, मुझे बताओ? मुझसे छिपाओगे भी, तो कितने दिनों?'
हारुन ने कोई जवाब नहीं दिया। वह आँखें मूंदे लेटा रहा।
चलो, गनीमत है कि इस घर में सासजी या दोलन हमारे मामले में दखल नहीं देतीं। मैं अपने पति से, चाहे जैसे भी वात करूँ, हमारी बातों में टाँग अड़ाने वाला कोई नहीं है। कोई भी हमारी बातों में ज़बर्दस्ती टपकने की कोशिश नहीं करता-बहू या भाभी, पति के लिए यह करो, वह करो! पति के लिए जो कुछ भी करना है, मैं खुद करूँगी। विवाह से पहले हम एक-दूसरे के साथ बेहद खुश थे। कोई भी तीसरा व्यक्ति हमें हिदायत देने नहीं आया कि किसी का मन पाने के लिए, क्या-क्या करना ज़रूरी है! किसी की भी मदद लिए बिना ही, हम दोनों ने बेहद सहज, स्वछन्द और निर्विघ्न तरीके से, एक-दूसरे को अपना मन सौंप दिया था।
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