उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
अचानक हारुन की दहाड़ सुनकर, मैं झटपट, खिड़की से हट आई। उस कमरे में जाकर, मैंने देखा, वह सासजी के कमरे में उसी मुद्रा में लेटा हुआ है। दोलन उसके क़रीब बैठी, उसका सिर हिलाने की कोशिश कर रही थी। उसने डपटकर उसे दूर हटा दिया।
मुझे देखकर, सासजी ने कहा, 'उसे क्या तक़लीफ़ है, तुम देखोगी नहीं, बहूरानी? तुम कहाँ जाकर बैठ गईं?'
हारुन ने साफ़-साफ़ सुना दिया, 'मुझे कुछ नहीं हुआ! मैं बस, य ही लेटा हआ हँ। मेरी देखभाल की कोई जरूरत नहीं है। अगर यह औरत यहाँ से चली जाए और कोई और काम करे, तो मुझे चैन मिलेगा।'
और कौन-सा काम बचा है? रात का खाना पका लिया है; घर-द्वार की सफ़ाई-धुलाई भी पूरा कर लिया है। अब तो कोई भी काम बाकी नहीं है। रसूनी और सकीना भी हसन के कमरे के बरामदे में बैठी-बैठी गपशप कर रही थीं।
'चाय-वाय कुछ पीओगे? ला दूं?'
'ना-
'पूछ क्या रही हो?' सासजी ने कहा, 'जाओ, चाय बनाकर ले आओ।'
मैं चाय बनाने के लिए बावर्चीख़ाने में चली गई। जब मैं सास-ससुर, दोलन, अनीस, और हारुन के लिए ट्रे में चाय सजाकर, सासजी के कमरे में आई, हारुन कमरे से बाहर निकल गया। उसे चाय नहीं पीना था।
'तुमने उससे क्या कहा है, बहू?'
ट्रे हाथ में लिए-लिए मैं जस की तस खड़ी रही! मेरी दोनों हथेलियों में ट्रे!
फिर से आँचल ढलक गया। मेरा कोई हाथ खाली नहीं था कि मैं सिर पर दुबारा आँचल डाल लूँ!
'मैंने तो उन्हें कुछ भी नहीं कहा।'
'कुछ तो ज़रूर कहा है। अगर ऐसा नहीं होता, तो उसका मन इतना उचाट क्यों है?'
'पता नहीं, दफ़्तर में कुछ हुआ है या नहीं...?' मैंने मिनमिनाकर कहा।
सासजी का चेहरा लटक गया, 'दफ्तर में कुछ नहीं हुआ। उन्होंने पूछा था-'
'.....................'
'फिर क्या बात है? तुमसे ही अनबोला ठान रखा है! जरूर तुम्हारी ही वजह से...'
मैं ही हारुन के बिगड़े मूड की वज़ह हूँ, इस बारे में जितना मेरी सास जी निश्चित थीं, उतना ही दोलन भी!
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