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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


कपड़े बदलने के बजाय, उसने कमरा बदल दिया। मैं भी उसके पीछे-पीछे कमरे से बाहर निकल आई। मैंने देखा, वह सासजी के बिस्तर पर, लम्बा होकर लेट गया।

'क्या हो गया है तुम्हें? तबीयत खराब लग रही है?'

सासजी एकदम से हड़बड़ा गईं। हारुन की तबीयत खराब है, दोलन को आवाज़ देकर, उन्होंने उसे हारुन के पास बैठने को कहा। रानू से निम्बू का शर्बत बना लाने को कहा। मुझे उसका सिर सहलाने का हुक्म दिया।

उसने इन सबके लिए एकदम से मना कर दिया। ना, उसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। वह नहीं चाहता कि उसके सिर पर कोई हाथ फेरे। वह शर्बत भी नहीं पीएगा। उसके पास किसी को बैठने की भी ज़रूरत नहीं। बस, वह कुछ देर आँखें मूंदकर लेटा रहे। वह ठीक हो जाएगा। उसे कोई तंग न करे।

मैं धीरे से उठी, काँचीपुरम में लिपटी, चेहरे पर रंग-रोगन पोते, सास जी के कमरे से बाहर निकल आई। मेरी पनाह तो बस, खिड़की थी। वहाँ खड़े-खड़े, टुकड़ाभर आसमान को निहारते हुए, मैं मन ही मन अपने से बातें कर सकती हूँ। लेकिन आसमान भी शायद नहीं समझता कि हारुन को आख़िर हुआ क्या है? वह क्या अचानक ही, किसी के इश्क में पड़ गया है? वह लिपि नामक लड़की? हासन क्या अचानक दुबारा उस लड़की के प्रति आकर्षित हो उठा है।

मेरे सीने के अन्दर, कहीं दर्द चिनचिना उठा। इन्सान इतना...इतना क्यों बदल जाता है? हारुन खुद ही क़बूल कर चुका है कि अब वह लिपि को प्यार नहीं करता।

लेकिन, ऐसा हो भी तो हो सकता है। पुराने प्रेम की जड़ें, दुबारा लहरा उठी हों और उसमें नए सिरे से डाल-पत्ते हरिया उठे हों। बचपन में आरजू को भी किसी लड़की से प्रेम-वेम हो गया। जब वह बड़ा हुआ, तो उस लड़की को बिल्कुल भूल ही गया और किसी नई लड़की से प्रेम हो गया। उसके बाद, अचानक रास्ते पर, बचपन की उस प्रेमिका से भेंट हो गई। बस, उसकी ज़िन्दगी उलट-पलट गई। अब उस नई लड़की से मिलना-मिलाना अनियमित हो उठा। आरजू अपने बचपन की उस प्रेमिका को ही खोजता फिरा। वह उससे मिलकर यह बताना चाहता था कि उसके दिल की गहराइयों में आज भी उसके लिए प्यार बसा हुआ है। ऐसा होता नहीं, यह बात भी नहीं है। होता है, ऐसा भी होता है।

मेरे अन्दर भयंकर दर्द जाग उठा था। खिड़की पर खड़ी-खड़ी, मैं अपने तमाम दर्द-तकलीफ़, खुद महसूस करती रही। हारुन को वह दर्द-तकलीफ़ बूंद-भर छू भी नहीं पाया। हारुन अचानक ही काफ़ी दूर चला गया था। मुझे बेहद अकेलापन लगता है। कहने को मैं अपने पति के घर में रहती थी, लेकिन उस घर में मानो मैं जनम-जनम से अकेली हूँ।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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