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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


शाम को घर लौटने के बाद, मुझे काँचीपुरम साड़ी में देखकर, हारुन ने बातचीत की पहल की।

उसने सवाल किया, 'कहीं गई थीं?'

'ना! कहीं नहीं!'

'कहीं नहीं, तो यह साज-श्रृंगार क्यों?'

यह साज-श्रृंगार क्यों, हारुन को यह बताने में मुझे शर्म आई। मैं उसे यह नहीं बता सकी कि उसे खुश करने के लिए ही मैंने वह साड़ी पहनी है। मैंने यह साड़ी इसलिए पहनी है कि मुझे इस साड़ी में देखना, उसे अच्छा लगता है। उसका मूड ठीक हो जाए। उसे यह समझाने के लिए कि मैं कोई बदसूरत औरत नहीं हूँ। तुम मुझसे विवाह करके ठगे नहीं गए। मैं अगर ज़रा-सा सज-धज लूँ, तो मैं बेहद हसीन लगती हूँ। यह बात अगर वह भूल गया हो, तो उसे समझाना चाहती थी। लेकिन मैंने उससे कछ भी नहीं कहा। बस. सिर झकाए खडी रही।

हारुन मेरे जवाब का इन्तज़ार करता रहा। मेरी छाती फटती रही. मगर मेरी जुबान से कुछ नहीं फूटा।

मेरा जवाब न पाकर, हारुन जब पैन्ट-शर्ट बदलकर लुंगी पहनने जा रहा था, मैंने कहा, 'चलो न, हम कहीं सैर कर आएँ, पहले की तरह! अब तो हमारे बेहद सुखद दिन हैं।'

'सुखद समय?'

हारुन की दोनों आँखों में ही नहीं, समूचे अंग-प्रत्यंग में विस्मय झलक उठा। हाथ-पाँव-छाती-पेट-हर जगह भयंकर विस्मय!

सुखद समय क्यों, यह हारुन नहीं जानता।

उसकी आँखों की तरफ़ देखती हुई। मैं मन्द-मन्द मुस्करा उठी। उस मुस्कराहट में शर्म थी और खुशी थी!

हारुन मेरी मुस्कान कोई अनुवाद नहीं कर पाया।

मुझे कहना ही पड़ा, 'बच्चा होगा, यह सुखद बात नहीं है?'

'बच्चा?'

हारुन की आँखें मारे विस्मय के एकदम से बड़ी-बड़ी हो उठीं। वह पलटकर मेरे सामने आ खड़ा हुआ। उसका, चौंकना देखकर, मैं भी चौंक उठी। यह कोई मेरा दावा नहीं था कि मुझे उल्टियाँ हो रही हैं, सिर घूम रहा है...कि मेरी कोन में बच्चा है। यह तो बाकायदा जाँच-परख के बाद, डॉक्टर ने ही कहा है। इसमें कहीं, कोई झूठ नहीं है। हाथोंहाथ सबूत मिल चुका है!

हारुन ने होठ बिचका दिया! इसकी वज़ह मेरी समझ में नहीं आई।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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