उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'कम क्यों पड़ेंगे? मैंने तो यह बात नहीं कही। मैं अभाव की बात नहीं कर रही, काम की बात कर रही हूँ। दिमाग-बुद्धि का उपयोग ज़रूरी है। खाली दिमाग शैतान का कारखाना बन जाता है, तुम्हें तो मालूम है।'
मेरी यह बात सुनकर, हारुन ने मुझे कमर से लपेट लिया और बिस्तर पर ला विठाया और खुद भी आ बैठा।
मेरी ठुड्डी छूकर, मेरा चेहरा अपनी तरफ़ घुमाते हुए कहा, 'तुम मेरे माँ-बाप की देखभाल करो, मेरे भाई-बहनों को सम्भालो। इनका भला-बुरा देखने का दायित्व अब तुम्हारा है। तुम ठहरी घर की बहू! ये सभी लोग तुम्हारे आसरे-भरोसे ही हैं। इन लोगों का मन पाने की कोशिश करो, समझी? अगर इन लोगों का प्यार पा सकीं, तो समझो, तुम जीत गई। इस घर और घरवालों को अगर तुम अपना बना सकी, तो मुझे कितना अच्छा लगेगा, कभी सोचा है?'
मैंने अपनी ठुड्डी पर से उसका हाथ हटाते हुए जवाब दिया, 'अगर मैंने नौकरी की, तो घर की बहू के तौर पर मैं अपना कर्तव्य नहीं निभाऊँगी, ऐसा तो मैंने नहीं कहा। मैं सब करूँगी! दोनों फ़र्ज़ निभाऊँगी।'
कैसे कर सकोगी? इतना वक़्त कहाँ होगा तुम्हारे पास, बताओ? मुझे नहीं देखती! उनके साथ मिलजलकर बैठने का मझे फ़र्सत कहाँ है? उसपर से फट से ब्याह भी कर डाला। अब मेरे पास कोई वक़्त बचता भी है, तो वह मैं तुम्हारी ही नज़र कर देता हूँ।
हारुन ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और ख़ुद भी वह मेरी बग़ल में लेट गया।
मेरे माथे पर लहराते हुए बालों को हटाते हुए, उसने नरम लहज़े में दुबारा कहा, 'यह समूचा घर अब तुम्हारा ही तो है। अब यह घर जैसे चाहे, सजाओ-सँवारो, देखरेख करो। इतना-इतना काम रहता है घर में और तुम कहती हो कि वक़्त नहीं कटता? काम करने का मन हो, तो काम का अभाव है भला?'
मैंने लम्बी उसाँस भरी!
|