उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
हारुन शिल्पकला में गाने के कार्यक्रम में आखिर क्यों गया था, आजकल अक्सर सोचती रहती हूँ! अपने लिए लड़की का चुनाव करने? कोमलमना लड़कियाँ गाना सुनने जाती हैं। अगर किसी हसीना के पीछे लगकर, उसे ब्याह लाया जाए और ज़िन्दगी में निश्चिन्त हो लिया जाए। इस लड़की में गुण है! यानी किसी गुणी लड़की से ब्याह करने का कौशल ही, हारुन की योजना थी? विवाह से पहले के हारुन और इस हारुन में, मैं मेल नहीं बैठा पाती।
ब्याह से पहले वह सन्देशा देता था, 'सुनो, शाम पाँच बजे स्विस के सामने आ जाओ।'
'यह स्विस कहाँ है?' मैंने पूछा
'तुम स्विस नहीं पहचानतीं? यह तुम कैसी बातें करती हो? ढाका शहर की लड़की होकर, ऐसा कहना, तुम्हें शोभा नहीं देता।'
उसी हारुन को अब कभी किसी खरीदारी के लिए चलने को कहती हूँ, तो वह साफ़ ज़वाब देता है कि अकेली चली जाओ, या दोलन या हबीब को साथ ले जाओ।'
मुझे किसी को साथ ले जाने की क्या ज़रूरत है? इसलिए कि मेरा विवाह हो गया है! ब्याह हो चुका है, इसलिए क्या अब मैं अन्धी हो गई हूँ या मैं रास्ता नहीं पहचानती? व्याह हो चुका है, इसलिए क्या मैं पंगु हो गई हूँ। अब मुझे किसी के कन्धों का सहारा लेकर चलना होगा?'
मैंने हारुन से कहा, 'मैं क्या रास्ता-घाट नहीं पहचानती? मुझे अकेली बाहर जाने को मना क्यों कर रहे हो?'
'कहाँ जाना चाहती हो?'
'बारी जाऊँगी!
'बारी क्यों जाना है?'
'क्यों, मतलब? बस, ऐसे ही...!'
'ऐसे ही क्यों जाना चाहती हो?'
हारुन के सवाल में दम था। वारी में अगर कोई काम न हो, तो ख़ामख़ाह वारी क्यों जाऊँगी?
'अब तुम इस घर की बहू हो। देखो, यूँ बार-बार मायके जाना सही बात नहीं है। तुहारा इतना जाना-आना, तुम्हारे अम्मी-अब्बू को भी पसन्द नहीं आएगा। वे लोग सोचेंगे ज़रूर तुम इस घर में सुख-चैन से नहीं हो।'
'यह तुम कैसी बातें करते हो? मेरे जाने से वे लोग ख़ुश ही होंगे।'
हारुन ने झुंझलाकर ही कहा, 'ठीक है! जब तुम जाना तय कर चुकी हो, तो चली जाना! मैं गाड़ी भेज दूंगा। दोलन या माँ को साथ लेती जाना या रात तक इन्तज़ार करो। दफ्तर के बाद, न हो, मैं ही तुम्हें ले जाऊँगा।'
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