उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
शाम को हारुन बौखलाया हुआ-सा घर लौटा। उसे इसी वक़्त किसी दावत में जाना था।
'तुम्हें अकेले दावत में जाना है?' मैंने पूछा।
आमतौर पर विवाहित लोगों को पत्नी-समेत आमन्त्रित किया जाता है। लेकिन हारुन ने मुझे साथ चलने को नहीं कहा, बल्कि अपनी शर्ट-पैन्ट फ़ौरन इस्त्री करने का हुक्म दिया।
जब मैं इस्त्री कर रही थी, हारुन ने दरयाफ़्त किया, 'अच्छा, उपहार कौन-सा ले जाऊँ?'
'फूल ले जाओ-'
'धत्त्! फूल कैसे ले जाऊँ? यह तो विवाह का नियन्त्रण है!'
सासजी मेरे पास ही खड़ी थीं।
उन्होंने कहा, 'ऐसा कर, कुरान शरीफ़ और जायेनमाज़ दे दे! सबसे बढ़िया उपहार!'
'मैं डिनर-सेट देने की सोच रहा था।'
बातचीत के दौरान दोलन आ टपकी।
'तुम भी क्या बात करते हो, भाईज़ान? इतने महँगे दाम का डिनर-सेट दोगे? टी-सेट दे दो, ख़र्च कम पड़ेगा।
उपहार-प्रसंग में. मैंने बात और आगे नहीं बढ़ाई। हारुन ने जो तय कर लिया था, वही देगा।
मुझे डॉक्टर के यहाँ ले चलने के बारे में, हारुन से कुछ कहने का मौक़ा ही नहीं मिला। वह सज-धजकर, बदन पर सेन्ट छिड़ककर, बाहर निकल गया।
मैं उसे जाते हुए देखती रही और सोचती रही कि यह क्या वही हारुन है, जो कभी मुझे प्यार करता था? जो मुझे अक्सर ही अपने दोस्त, शफीक़ के यहाँ ले जाता था? यह क्या वही हारुन है, जिसे रविन्द्र संगीत और फूल प्रिय थे? हारुन क्या सच ही फूलों से प्यार करता है? इस घर में तो कोई सूखा-मुझाया गुलाब भी नहीं है! तो फिर उसके दफ्तर में उसकी मेज़ पर रखे फूलदान में जो ताजा फूल सजे होते थे, वह क्यों? किसको दिखाने के लिए?
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