उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
उसी अकरम ने, जो पाँच सालों तक नूपुर से इश्क करता रहा, उससे विवाह नहीं किया। इस वाक़ए से पापा को इस क़दर चोट लगी थी कि किसी के भी मेल-जोल पर नज़र पड़ते ही, उन्हें शक होने लगता था कि छोकरा फ़ौरन सटक लेगा। हारुन को भी देखकर। उन्हें ज़रूर यही ख्याल आया होगा कि पाँच सालों तक मुझसे इश्क करने के बाद, आज-कल में विवाह करने के दिलासे देते हुए, विवाह में धर की सजावट, आमंत्रितों की फ़हरिश्त, खाने तक का मेनू तय करने के बाद, धूमधाम से सारी तैयारी पूरी कर लेने के बाद, एक दिन हारुन भी, अकरम की तरह भाग खड़ा होगा।
हमारे घर में दौलत का अम्बार कभी नहीं लगा, मगर ऐसी मोहताज़ी या बदहाली भी कभी नहीं थी कि पापा हम बेटियों को जैसे-तैसे पार करके अपनी जान छुड़ाते। कॉलेज में पढ़ाकर, वे जितना कमाते थे, गृहस्थी आराम से चल जाती थी। नूपुर ने तो शादी न करने का फैसला कर लिया, लेकिन कुछेक महीने गुजरते ही, वह खुद ही संन्यास से बाहर निकल आई। पापा ने जाँच-परखकर उसके लिए एक दूल्हा जुटा लिया। उसने भी ब्याह से इन्कार नहीं किया। दुलाल, जिसके साथ नूपुर का विवाह हुआ है, स्वभाव-चरित्र में भला है, भली-सी नौकरी करता है। नूपुर खुद भी सोनाली बैंक में खजांची पद पर बहाल हो गई है। इस देश का यही तो दुर्भाग्य है, किसी के भी ज्ञान और तजुर्बे को सही जगह इस्तेमाल नहीं करता। नूपुर और दुलाल ख़ासे मज़े में हैं। विवाह के बाद, महीने-भर के अन्दर, मियाँ-बीवी शान्तिनिकेतन की भी सैर कर आए। एक महापाजी-चुलबुली बेटी को भी जन्म दे डाला। मेरे लिए पाँच-छः रिश्ते आए, खोज-खबर के बाद, पापा ने ही मना कर दिया। वे मेरे लिए बेहतर लड़के की तलाश में थे। यह जो अचानक वे इस क़दर बौखला उठे और मुझे यह हुक्म.दे डाला कि हारुन फ़ौरन विवाह कर लूँ या उससे सारे रिश्ते तोड़ दूँ, वह शायद इसलिए कि प्रेमी मर्द पर उन्हें भरोसा नहीं था। पापा शायद मुझे हारुन की बेइज़्ज़ती का शिकार नहीं होने देना चाहते थे, बेइज्जत तो मैं खुद हुई थी।
असल में ऐसी बात कहकर, पापा ने मेरा ही अपमान किया था। वे हारुन पर तो अविश्वास करते ही थे, मुझे लगा वे मुझ पर भी अविश्वास करते थे। उनके मन में ज़रूर यह ख्याल घर कर गया था कि मेरा रूप-गुण किसी मर्द को आकर्षित करने को काफ़ी नहीं है। उसी अपमानबोध और अपने पर गहरे आत्मविश्वास के साथ, मैंने हारुन के आगे हड़बड़ी मचा दी और उससे विवाह करके, पापा को समझा दिया कि इतने दिनों मैं किसी दुश्चरित्र और मक़्क़ार के साथ नहीं घूम रही थी। पापा के सामने यह साबित करके मैंने एक किस्म की तृप्ति महसूस की थी।
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