उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
पापा मेरे विवाह के लिए इतने उतावले क्यों हो उठे थे, मैं बखूबी समझती थी। नूपुर एक अमीरज़ादे, अकरम के इश्क में पड़ गई। अकरम हमारे यहाँ घर के बेटे जैसा ही था। जब-तब हमारे घर आ धमकता था। दिन-भर नूपुर के साथ गपशप करते गुज़ार देता। उसने सभी घरवालों को बिल्कुल अपना बना लिया था। माँ को, वह भी माँ बुलाता था, पापा को-पापा।'
पापा कहा करते थे, ‘अकरम मेरा बड़ा बेटा है।'
नूपुर से वह बस, आज या कल में ब्याह करनेवाला था। विवाह के मौके पर घर की सजावट कैसे की जाएगी, किस-किस को किया जाएगा, पुलाव-मांस ही नहीं, मछली और तले हुए बैंगन भी परोसे जाएँगे।
'ये तले हुए बैंगन क्यों?' मैंने पूछा।
अकरम ने अपने किसी दोस्त के विवाह में तले हुए बैंगन और कई मछली खाई थी और उसे इतना मज़ा आया था कि उसने तय कर डाला कि वह अपने विवाह में भी खाने के आइटम रखेगा और अपना यह फैसला उसने घरवालों को भी सुना दिया था।
तले हए बैंगन क्यों? उसने भी पलटकर मझसे सवाल किया था।
मैंने इस सवाल का जवाब न देकर, कहा, 'मछली का खट्टा भुर्ता क्यों नहीं, भई? शटकी मछली का चाय क्यों नहीं? चिंगडी मछली का मलाई-करी क्यों नहीं? सरसों-ईलिश मछली क्यों नहीं? तली हुई कोई मछली क्यों नहीं? भात के साथ तो ये ही सब ज़्यादा लज़ीज़ लगते हैं।'
अकरम और नुपुर ने मेरी फ़हरिश्त सुनकर ज़ोर का ठहाका लगाया।
नूपुर ने हँसकर कहा, 'कोई बात नहीं। ब्याह के दिन तुझे बावर्चीख़ाने में बिठाकर पोस्ता-भात और शुट्की मछली का चाँप खिलाऊँगी, 'देख लेना!'
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