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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


हारुन ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन उसने यह ज़रूर कहा कि छः महीने बाद, वह मेरी कोई उज्र-आपत्ति नहीं सुनेगा। वह मुझे उठाकर, सीधे अपने घर, धानमंडी ले जाएगा। इतनी देरी उससे सही नहीं जाएगी। उसके सभी यार-दोस्त अब तक बच्चों के बाप बन गए। एक वही अब तक...'

मैं चुपचाप सुनती रही।

'वैसे तुम्हें इतनी जल्दी क्यों मची है?'

मैंने पापा का कहा हुआ जुमला दोहरा दिया, ‘यानी तुमसे यूँ मिलना-जुलना पापा को पसन्द नहीं है।'

'तुम अपने पापा को समझाओ न!'

'वे नहीं समझेंगे!'

'यह भी कोई बात हुई?

'हाँ, यही बात है!

'नहीं, हर बात के लिए थोड़ी-बहुत तो तैयारी की ज़रूरत है? ब्याह क्या बच्चों का खेल है, फट् से हो गया?'

'ब्याह करने पर उतर आओ, तो हो ही जाता है।'

'चक्कर क्या है? तुम्हारे पापा इतने उतावले क्यों हो उठे हैं?'

'वह तुम नहीं समझोगे।'

'तो समझा दो न!'

ना, उस वक़्त मुझे उसे समझाने की तबीयत नहीं हुई।

मैंने सीधे-सीधे कहा, 'देखो, ब्याह अगर करना है, तो अभी ही...हो सके तो, आज ही...' .

'लेकिन ब्याह तो छः महीने बाद होना तय हुआ था।'

'नहीं, अब मैं छः महीने भी इन्तज़ार नहीं कर सकतीं।'

'तो क्या करोगी?'

'पता नहीं'

मैं बेतरह उदास हो आई। मेरी उदासी ने थोड़ा-बहुत हारुन को भी अपनी चपेट में ले लिया। हारुन ने भी देर नहीं की। अगले सात दिनों के अन्दर, अपने कुछेक करीबी रिश्तेदारों और मित्रों को दावत दे डाली और काफ़ी कुछ घरेलू तरीके से ब्याह का आयोजन निपटा लिया।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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