उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मैं उनकी बात सुनकर अवाक् रह गई थी।
मुझे और ज़्यादा अवाक् करते हुए पापा ने कहा, 'मैं अब यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता कि वह लड़का यहाँ मज़े से अड्डेबाजी करने आए।'
'ब्याह जब करना होगा, कर लूँगी।' मैंने कहा।
'यह 'जब', कब आएगा?' पापा हुन्कार उठे।
'छः महीने बाद!'
'छः महीने बाद और आज में फ़र्क क्या है? अगर छः महीने बाद, ब्याह करना ही है, तो आज क्यों नहीं कर सकती?'
पापा से जुबान लड़ाने का मेरा मन नहीं हुआ।
माँ ने भी कहा, 'ख़ामखाह वात मत बढ़ा। ज़्यादा तैश में आ गए, तो पता नहीं क्या का क्या हो!'
माँ ने भी पापा के बारे में ही सोचा! पापा का ब्लड-प्रेशर हमेशा से ज्यादा रहा है। अभी साल-भर पहले, नूपुर की वजह से उनका ब्लड प्रेशर इतना बढ़ गया कि दिल का दौरा पड़ते-पड़ते रह गया। बस, बाल-बाल बच गए। अब कहीं, मेरी वज़ह से कोई हादसा न हो जाए। खैर कोई हादसा हो, यह मैं भी नहीं चाहती थी।
उसी दिन मैंने हारुन से बात की, 'अगर हमारे ब्याह की कोई सम्भावना है, तो वह जितनी जल्दी हो सके, हो जाए।
मेरी जल्दीबाजी देखकर हारुन ज़रा परेशान हो उठा। अभी तक मैं ही ब्याह के प्रस्ताव पर कभी इम्तहान ख़त्म होने तक या इस साल के बजाए अगले साल का वास्ता देकर, उसे रोके हुए थी।
हारुन ने भी फ़ौरन जवाब दिया, 'ठीक है, छः महीने बाद हम विवाह कर लेंगे। दोनों भाइयों को ज़रा ठीक से खड़ा कर दूँ। छः महीने बाद, ना मत करना। तब मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगा।'
मैंने भी वादा किया छः महीने बाद, मैं लाल सुख़ साड़ी पहनकर उसकी दुल्हन बन जाऊँगी।
'इन छः महीनों में कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि मुझसे तुम्हारा मन उचट जाए?' 'तुम्हे क्या लगता है?' मैं हँस पड़ी।
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