लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


हारुन ने जवाब दिया, 'तुम ही कहो, जिस औरत को संगीत से प्यार नहीं, सिर्फ़ जमी-जमा, गाड़ी-मकान, रुपए-पैसे के किस्से रटती हुई, वक़्त गुज़ार देती थी, मैं क्या उससे ब्याह कर सकता हूँ?'

'ब्याह भले मत करो। सवाल यह नहीं है। एक इन्सान से दूसरे इन्सान की रुचि, दिलचस्पी में फ़र्क सरासर मुमकिन है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि चूँकि उससे तुम्हारी रुचि दिलचस्पी मेल नहीं खाती, इसलिए वह लड़की बुरी है। जेनरेटर का व्यवसाय मेरी रुचि से बिल्कुल मेल नहीं खाता, इसलिए क्या मैं तुम्हें बुरा कहूँगी?'

हारुन ने उससे आगे कुछ नहीं कहा। मैं तो यह अन्दाज़ा भी नहीं लग पाई कि उसे अपनी बात पर मामूली-सा भी अफ़सोस है या नहीं।

उस वक़्त वह शायद मन-ही-मन यह कह रहा था-'तुम्हारी बात मान लेता हूँ, मगर मन में नहीं लेता। मान लेना और मन में लेना, दोनों बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं।'

उस दिन धलेश्वरी के तट से उठाकर, शाम के वक़्त, वह अपने दफ्तर ले गया। उस वक़्त तक दफ्तर के सभी लोग अपने-अपने घर चले गए थे। चारों तरफ़ के सुनसान सन्नाटे को दोनों हाथों से हटाते-हटाते, जब अपने कमरे में दाखिल हुआ, तो मैं ज़रा डरी-डरी-सी थी। लेकिन अगले ही पल, सारा डर-भय, प्यार के तूफ़ान में बह गया।

उस दिन हारुन ने पहली बार मुझे चूम लिया। हल्का-फुल्का चुम्बन नहीं, बाकायदा तेंतुल चूसने जैसा होंठों को चूस लेने जैसा उसके एक चुम्बन से मेरे होठ फूलकर ढोल हो आए, मानो मुझे बर्रे ने डंक मारा हो। मेरे फूले हुए होंठ देखकर, हारुन की कमर-तोड़, घुटने-तोड़ ठहाके गूंज उठे।

उसने हँसते-हँसते कहा, 'तुम तो पहचान में ही नहीं आ रही हो, जी!'

मैंने अपने होंठ, हथेलियों से ढंक रखा था। वह मेरी हथेलियाँ हटा-हटाकर बार-बार मेरे फूले हुए होंठ देख रहा था।

'इसमें इतना देखने को क्या है?'

'तुम्हें चूमते ही, तुम्हारे होंठ बेतरह फूल उठते हैं। इतने नाजुक हैं, तुम्हारे होंठ! इन होंठों को पहले किसी ने, कभी नहीं छुआ। मुझसे पहले, किसी ने भी तुम्हारे होंठ नहीं चूमे थे।'

हारुन की आँखों में खुशी की चमक झलक उठी। उसके अलावा, और किसी ने भी मेरे होंठ नहीं चूमे, इस बात की ख़ुशी! उस रात जब फूले हुए होंठ लेकर घर लौटी, तो अजब फ़ज़ीहत में पड़ गई। रात को जब मुझे खाने के लिए बुलावा आया, तो अँधेरे में बिस्तर पर लेटी-लेटी, मैंने माँ को कहा कि मैं बाहर से खाकर आ रही हूँ। फूले हुए होठ के बारे में सैंकड़ों सवालों का सामना करना पड़ता। झमेला जितना टाल दिया जाए, उतना ही बेहतर! जैसे-जैसे रात. बढ़ती गई, मेरी भूख भी बढती गई। वह रात भूख से छटपटाते हुए गुजरी। रात-भर नींद ही नहीं आई। अगली सुबह हारुन का फोन मिलते ही, मैं उसके मोतीझील वाले दफ्तर चली आई। हम दोनों ने सपरस्टार में लंच किया। वह समूचा दिन हारुन ने मेरे साथ गुजारा! पहले कभी, किसी ने नहीं चूमा, यह खुशी अभी भी, ज़रा भी कम नहीं हुई थी। मुझे वह अपने सीने से कसकर बाँधे रहा, मानो मैं छूट न जाऊँ! ऐसी अनछुई औरत उसकी मुट्ठी में थी, इस औरत को हासिल करना ही होगा। अब यह हिरणी उसकी थी। अब उस शख्स के अन्दर का बाघ, उस हिरनी को मज़े ले-लेकर खाएगा ना, उस वक़्त हारुन मुझे अन्य लड़कों से कहीं से भी अलग नहीं लगा था। मुझे यह बिल्कुल नहीं लगा कि हारुन मुझे किसी भी शर्त पर प्यार कर सकता है। धलेश्वरी के तट पर बैठकर, वह लिपि, लूना, लीज़ा, लीमा, से इश्क कर सकता है, लेकिन विवाह करने के लिए, उसे कच्ची उम्र की नाजुक-कोमल औरत चाहिए। उसके बिना उसका नहीं चलेगा। हारुन ने विवाह का जिक्र छेड़ दिया। वह मुझसे विवाह करना चाहता था।

मेरे राजी न होने की कोई वज़ह भी नहीं थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book