उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
हाँ, यह तो सच है। हारुन ने कोई बेतुकी बात नहीं की। मुमकिन है, मुझे भी किसी से इश्क हो गया होता। उसके बाद वह प्यार टूट-बिखर भी गया होता। उसके बाद मैं फिर किसी अज़नबी से मिली होती, जिसे देखते ही मेरे मन ने कहा होता, यह शख्स बिल्कुल वैसा ही है, जैसा मैंने चाहा था। मुझे ऐसा ही शख्ना चाहिए था। शिप्रा के जीवन में भी पहले एक अदद प्रेमी था। उस प्रेमी से उसका रिश्ता लगभग दो साल तक रहा। लेकिन वह लडका शराब पीता था. इसलिए वह रिश्ता वह चला नहीं पाई। उसके बाद तो उसे दीपू से प्यार हो गया और वह उससे मजे से ब्याह कर बैठी। ऐसा होता नहीं, मगर हो गया।
'उसकी बहुत याद आती है?'
एक लम्बी उसाँस भरकर हारुन ने कहा, 'न्ना!'
'याद नहीं आती? यह तुम क्या कहते हो? उसे याद करके तकलीफ़ नहीं
होती? उसे न पाने की तकलीफ़?'
हारुन हँस पड़ा, 'बिल्कुल भी नहीं।'
हारुन की आँखों में झाँककर, मैंने यह पढ़ने की कोशिश की वह सच्ची बात, कहीं मुझसे छिपा तो नहीं रहा है! मेरी आँखों में गुच्छा-भर ईर्ष्या थरथरा रही थी।
'किसी को सच ही प्यार करो, तो क्या उसे भूलकर, जी सकते हैं?' मैंने पूछा-
'क्यों नहीं जी सकते? मजे से जी सकते हैं?'
'यानी एक दिन तुम मुझे भी भूल जाओगे! मैं भी तुम्हें याद नहीं आऊँगी।'
'तुम और वह लड़की क्या एक हो?'
'न होने को क्या है? वह भी लड़की है, मैं भी लड़की हूँ। तुमने दोनों को ही प्यार किया है।'
'तुम्हारे साथ उसका कोई मुक़ाबला नहीं हो सकता।'
'क्यों?'
'वह बेहद बुरी लड़की थी। . 'बुरी क्यों?' 'वह तुम नहीं समझोगी।'
अब मुझे याद नहीं कि उस वक़्त मुझे यह सोचकर अच्छा लगा था या नहीं कि वह लड़की बुरी थी और मैं निश्चित रूप से अच्छी! असल में कोई अगर थोड़ी-बहुत तारीफ़ कर दे, तो इतना खुश नहीं होना चाहिए। जो शख्स अपनी पुरानी प्रेमिका को एक जुमले में बुरी होने का आरोप जड़ सकता है, वह अपनी नई प्रेमिका को भी मौक़ा और सुविधा मुताबिक 'बुरी' कहने से बाज नहीं आएगा। असम्भव क्याबाद में, मैंने हारुन से कहा भी था, 'लिपि के बारे में तुम्हारा वह मन्तत्य बेहद अशोभन था।'
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