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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


मैंने सोफे पर पसरते हुए कहा, 'लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे यह नौकरी बिना किसी बाधा-विघ्न के नसीब हो गई। मैंने बाक़ायदा दरखास्त दिया, बुलावा आया, टेस्ट दिया-लिखित भी और मौखिक भी! पास करने के बाद ही, सुफल मिला।'

'सारा कुछ इतना चुपचाप' हारुन ने दरयाफ़्त किया।

हारुन का गाल चूमते हुए मैंने कहा, 'हाँ, सबकुछ बिल्कुल चुपचाप! कुछ-कुछ बातें छिपा लेने की मेरी आदत जो है।'

काफ़ी रात गए, दोस्तों ने विदा ली। आरजू ने अपनी गाड़ी में सुभाष, नादिरा और चन्दना को भी बिठा लिया। उन लोगों को घर छोड़कर, वह गुलशन लौट जाएगा।

जब हम सोने के लिए कमरे में आए, तो हारुन ने दरयाफ़्त किया, 'नौक़री की बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई?'

'नहीं बताई, क्योंकि मैं चौंका देना चाहती थी।'

'ऐसी गम्भीर बात, तुमने चौंकाने का विषय मान लिया?'

'तुम तो चौंक गए न! यह सच है या नहीं? मैं यूँ गुपचुप काफ़ी कुछ कर सकती हूँ, यह देखकर तुम अवाक् हुए या नहीं?'

एक तमाचा पड़ने पर, तुम दो तमाचे जड़ देती हो, यह चक्कर क्या है? तुम क्या समझाना चाहती हो?'

उसके सवाल का जवाब दे में, मैंने थोड़ा वक्त लिया। हारुन की उत्सुकता ने मुझे बुरी तरह दबोच लिया।

'ब्याह के बाद, तुमने मुझे नौकरी नहीं करने दी. मतलब तुमने मेरी इच्छा के गाल पर तमाचा जड़ दिया। अब, कुछ सालों बाद, खुद अपनी नौकरी का इन्तजाम करके। मैंने तुम्हें चौंका दिया और यह भी समझा दिया कि मुझमें नौकरी पाने की क्षमता मौजूद है, यह है, तुम्हारी अनिच्छा के गाल पर दो करारा तमाचा!'

'अच्छा! अच्छा!'

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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