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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


वहीं बैठे-बैठे, एक दिन हारुन ने कहा, 'तुम्हारे साथ, यह मेरा पहला प्यार नहीं है।'

मुझसे यह उसका पहला प्यार नहीं है। हारुन किसी और के साथ भी यहीं इसी नदी किनारे, इसी तरह सटकर बैठा था, ठीक इसी तरह वह किसी और लड़की का हाथ थामे, यहाँ बैठा रहा था। जैसे वह मेरी आँखों में आँखें डाले कहता है-में तुम्हें प्यार करता हूँ, बिल्कुल वैसे ही किसी और लड़की की आँखों में आँखें डालकर, उसने यही जुमला दुहराया है। मेरे सीने में कोई तकलीफ़ महीन धागे की तरह झूलती रही। मैंने तो सोचा था, मैं ही उसका पहला प्यार हूँ, लेकिन न्ना! पहले-पहले प्यार में सबकुछ इतना मधुर क्यों लगता है, मुझे समझ में नहीं आता।

अहंकार मेरी आवाज़ में आकर बैठ गया।

मैंने होंठ फुलाकर कहा, लेकिन मेरा यह पहला प्यार है।'

दूर किसी नन्हीं डोंगी पर नज़रें गड़ाए, घास दूंगते-दूंगते, मेरी निगाहें धुंधला आईं।

पानी की छलात्-छलात् आवाज़ और हम दोनों के बीच हहरती नीली स्तब्धता को चीरते हुए, मैंने सवाल किया, 'उसके साथ क्या तुम यहाँ भी बैठा करते थे?'

'बहुत बार...।'

'वह शायद बेहद खूबसूरत थी?'

'हाँ, थी तो सही!'

मैं बिल्कुल ख़ामोश हो गई। मेरे अन्दर तकलीफ़ का महीन धागा गिरहें बाँधता रहा।

'उसे तुम बेहद-बे-हद प्यार करते थे?'

'हाँ, करता तो था।'

'जितना तुम मुझे प्यार करते हो, उससे भी ज़्यादा?'

हारुन ने हँसते-हँसते मेरी हथेली, अपने गर्म हाथों में ले ली और हौले-से दबाते हुए कहा, “एइ, तुम क्या नाराज़ हो गईं, बुद्ध कहीं की! वह तो मैं तुम्हें अपने पुराने रिश्ते के बारे में बता रहा था। उस लड़की को मैं प्यार करता था, अब नहीं करता। अब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।'

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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