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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


घर में जश्न की धूम मची हुई थी। अस्पताल से लौटकर, अभी थिर होते-न-होते, बच्चे के 'अक़ीका' जश्न का आयोजन! घर की सजावट के लिए, बाहर से कुशल सज्जाकार बुलाए गए। इतनी धूमधाम भला क्यों? अरे, खानदान का पहला बच्चा, उसके शुभागमन पर इसी तरह जश्न मनाने की रीत है।

–'हाँ, सो तो सच है!' मैं मन-ही-मन बुदबुदा उठी, 'अगर बेटी हुई होती, तो इतनी धूमधाम शायद नहीं होती। चूँकि बेटा हुआ है इसीलिए ऐसा जश्न का माहौल है। जितने नाते-रिश्तेदार आए, उनके लिए एक पूरी गाय जिबह करके, उन्हें पकवान खिलाया गया। नाते-रिश्तेदारों के अलावा जितने सारे अड़ोसी-पड़ोसी थे, इस घर के जितने सारे यार-दोस्त थे, जान-पहचान के लोग थे, सबको दावत देकर, पार्टी की गई।

हारुन ने बच्चे का नाम रखा है-महबूब-उर-रसीद! अपने नाम के साथ मिलाकर, उसने यह नाम रखा था। समूचा घर उपहारों से अँटा हुआ! हारुन दिन-रात जश्न की तैयारियों में व्यस्त! विराट आयोजन!

मैंने हारुन से दरयाफ्त किया, 'इसके नाम से मेरा नाम नहीं मिलाओगे?'

'भई, बाप के नाम के साथ मिलाकर ही, बच्चे का नाम रखा जाता है। तुम्हारे नाम के साथ कैसे मिला सकता हूँ? तुम्हारा पूरा नाम है-ज़ीनत सुलताना। अब बेटे का नाम क्या, महबूब-उर-सुलताना रखा जाए? बोलो?'

'खैर, छोड़ो! कम-से-कम उसके पुकार का नाम मुझे रखने दो। बेटे के पुकार का नाम रख दो-आनन्द! यह मेरी फ़ाइश है!'

'ठीक है! चलो, यही सही! 'आनन्द' नाम ही सही!' मैं हँस पड़ी।

मेरे हँसते हुए होंठों को चूमते हुए, हारुन ने कहा, 'तुमने मेरी ज़िन्दगी सार्थक कर दी 'वह कैसे? 'कैसे, यह तुम्हारी समझ में नहीं आया? मुझे मेरी सन्तान उपहार देकर-' हारुन पर सच ही मुझे तरस आने लगा बे-चा-रा!

जश्न में सेवती भी शामिल हुई और अनवर भी! दोनों मियाँ-बीवी घर के आदमी की तरह मेहमानों की ख़ातिर-तवज्जो में व्यस्त हो उठे।

व्यस्तता से फुर्सत पाते ही, सेवती मेरे पास आ बैठी।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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