उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'देखो, एहतियात से लेना! संभालकर! आराम से-आराम से!' हारुन ने मीठे लहजे में आगाह किया। मुझे उठकर बैठना पड़ा। दोनों हाथ साबुन और गर्म पानी से धोना पड़ा। उसके बाद मेरे हाथों पर साफ-सुथरी कथरी बिछा दी गई, उस पर बच्चे को लिटा दिया गया। छोटे-से शिशु को मैंने कभी गोद में नहीं लिया। मुझे काफ़ी डर लगा, कहीं यह मेरी बाँहों से फिसल न जाए। बच्चा मुँह विदोरकर रो उठा। उसने अपने होठ सिकोड़ लिए, जैसे अफ़ज़ल मुझे चुमते हुए, अपने होंठ सिकोड़े लेते थे।
हारुन मुझसे सटकर बैठ गया। उसकी अभिभूत आँखें बच्चे पर गड़ी हुईं।
'सब लोग कह रहे हैं, यह मेरे जैसा है! होगा नहीं? ज़रूर होगा।'
'तुम तो चाहते ही थे कि बच्चा देखने में तुम्हारी तरह हो!'
'मेरा बेटा, देखने में मेरे जैसा नहीं होगा, तो और किसके जैसा होगा?'
मेरे होंठों पर विद्रूपभरी मुस्कान झलक उठी। इस मुस्कान का हारुन ने शायद यह अनुवाद किया, मानो मैं यह कहना चाहती हूँ कि भई, बेटा मेरा भी है।
'इसके कान, तुम्हारे कानों जैसे हैं...'
हारुन अपने बेटे के बदन में कान के अलावा मुझे और कोई हिस्सा नहीं देना चाहता था।
बच्चे के गले में सोने की एक चेन पड़ी थी। बेटे का पहली बार मुँह देखते हुए, हारुन ने ही उसे पहनाया था। सुना है, मुँह दिखाई का यही नियम है। हारुन के तकाज़े पर, बच्चे को अपनी छाती का दूध पिलाना पड़ा। मेरे समूचे तन-बदन में झुरझुरी फैल गई। हारुन मेरी बग़ल में बैठा-बैठा, मुझे बच्चे को दूध पिलाते हुए, एकटक देखता रहा। अभी मैंने दूध पिलाना ख़त्म ही किया था कि समूचा कमरा मेहमान और डॉक्टर-नौ से भर उठा। इस बीच हबीब ने ढेर सारी मिठाइयाँ मँगा रखी थीं। सब लोगों को तश्तरी में मिठाइयाँ दी गईं।
शाम को हारुन के यार-दोस्त, हाथों में नज़राना लिए, बच्चे को देखने आ पहुँचे। कोई बच्चे के लिए कपड़े लाया था, कोई खिलौने, कोई दूध की बोतल, बदन में लगाने को क्रीम, साबुन, शैम्पू! कोई-कोई सोने की अंगूठी या चेन भी लाया था। मेरी माँ महीन कपड़े के छोटे-छोटे झबले लेकर आई। उनके पास इतनी दौलत नहीं थी कि सोने का कोई गहना खरीदकर लातीं। यह देखकर हारुन ज़रा हताश हो आया! शायद उसे घोर निराशा हुई थी।
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