उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
जब मेरी नींद टूटी, मैंने आँखें खोलकर देखा, मैं अस्पताल के किसी नए कमरे में, दूधिया-सफ़ेद बिस्तर पर लेटी हुई हूँ।
मैंने देखा, हारुन बच्चे को गोद में उठाए, दूसरे बिस्तर पर बैठा हुआ है और सासजी, दोलन, रान, सोहेली फूफी वगैरह उसे घेरे हुए खड़ी हैं।
सोहेली फूफी ने कहा, 'बिल्कुल हारुन पर गया है। हारुन जैसी ही नाक-आँख-माथा...'
दोलन ने कहा, 'हाथ की उँगलियाँ, भाभी की उँगलियों जैसी हैं...'
सासजी ने उसका जुमला सुधार दिया, 'अरे, नहीं, नहीं, हाथ-पैर की उँगलियाँ भी हूबहू हारुन जैसी हैं।'
'अच्छा, होंठ किसकी तरह हैं?'
'लगता है, जैसे हारुन के भाई के ही होंठ काटकर बिठा दिए गए हों-' दोलन बोल पड़ी।
सुमइया उस गोल घेरे में अपना सिर घुसाकर, बार-बार ज़िद करता रहा, उसे ज़रा देर बच्चे को अपनी गोद में लेने दिया जाए। हारुन ने एक हाथ से ही पीछे हटा दिया। उसने उसे बच्चे के क़रीब भी फटकने नहीं दिया।
'बाप की तरह, पैर भी लम्बे-लम्बे हैं-' सासजी ने राय दी।
कथरी खिसकाकर हारुन ने बच्चे के पाँव पर नज़र डाली। हारुन की मुग्ध आँखें चमक उठीं।
मैंने आँखें खोली। हारुन मुझे बच्चा दिखाने ले आया। उजला-धुला चेहरा! समूचे चेहरे पर पितृत्व का अहंकार! अहंकार ने मेरी आँखों के सामने, नवागत बच्चे को आगे कर दिया। मुझे उस नन्हे-से चेहरे में अफ़ज़ल का चेहरा नज़र आया। यूँ अफ़ज़ल का चेहरा मुझे अचानक...एकदम से याद नहीं आता, लेकिन उस वक्त वह नन्हा-सा चेहरा देखते ही, अचानक अफ़ज़ल का चेहरा मेरी आँखों के आगे तैर गया।
मैंने अफ़ज़ल के बेटे को अपनी गोद में लेने के लिए हाथ बढ़ा दिया।
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