उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
रानू मेरी बग़ल में बैठी, फुसफुसाती रही, 'दोलन को तो उसके ससुरालवाले अपने घर में घुसने ही नहीं देते। सुना है, सास की तरफ़ थाली फेंककर मारा था, बिचारी सास का माथा फट गया। यह औरत. असल में जीती-जागती डायन है!
शाम को, सेवती ने मेरी नींद तोड़ी। आँखों के नीचे की खाल खींचकर उसने जाँच की मुझमें कहीं खून की कमी तो नहीं है। उसने मेरी नाड़ी और ब्लडप्रेशर की जाँच की। सीने पर आला लगाकर दिल और फेफड़ों की भी जाँच की।
उसके बाद, उसने मेरी पीठ थपककर कहा, 'सब ठीकठाक है, भई!'
सब ठीकठाक घोषित करने के बाद, सेवती मेरे सिरहाने एक कुर्सी खींचकर बैठ गई।
'अफ़ज़ल के जाने का सारा इन्तज़ाम तय हो गया। उसने बताया। 'कब जा रहा है?
'सत्ताइस तारीख को!'
सेवती बेहद बुझी-बुझी नज़र आई।
अफ़ज़ल का प्रसंग बदलते हुए मैंने पूछा, 'तुम्हारे इम्तहान कब से शुरू हो रहे हैं?'
'अभी देर है! फिर भी इतनी-इतनी पढ़ाई करनी पड़ रही है कि क्या बताऊँ! सोने जाते-जाते, रात के तीन-चार बज जाते हैं।'
'अफ़ज़ल ने क्या तुमसे फिर किसी रात छेड़छाड़ की?'
सेवती एकदम से तीखी हो आई, 'वह मुझसे दुबारा छेड़छाड़ करेगा? अफ़ज़ल जैसा पिद्दी? उसमें इतनी हिम्मत है भला?'
सेक्ती का चेहरा काफ़ी सूखा-सूखा नज़र आया। ऐसा लगा, जैसे उसने बहुत दिनों से कुछ खाया न हो। मैंने भी महसूस किया कि अफ़ज़ल में इतनी हिम्मत नहीं है, इसलिए सेवती कहीं से क्षुब्ध है! अगर उस बन्दे में हिम्मत होती, तो सेवती बच जाती!
'ग़नीमत है कि आजकल वह किसी नंगी औरत की तस्वीरें नहीं आँकता-' सेवती ने कहा।
'फिर क्या आँकता है?'
'पिछले दिन मैंने देखा, उसने एक औरत की तस्वीर आँकी है। औरत की पिछाड़ी आँकी थी! वह औरत साड़ी पहने हुए थी, चेहरा नज़र नहीं आ रहा था। उस औरत के सामने एक सीढ़ी थी। सीढ़ी काफ़ी दूर तक चली गई थी।'
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