उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 362 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मेरे सीने के अन्दर कुछ हहरा उठा। सेवती मेरे क़रीब, उदास बैठी रही। मैंने अफ़ज़ल का चेहरा याद करने की कोशिश की। मेरे साथ कभी-कभी ऐसा भी होता है, उसका चेहरा याद नहीं आता। अच्छा, उसकी क्या पूँछे हैं या नहीं हैं? अब कभी-कभार जब बरामदे में आ खड़ी होती हूँ, तो अफ़ज़ल बगीचे में टहलता हुआ नज़र नहीं आता। मगर अब उसे प्यार करके, कोई अप्रिय घटना या दुर्घटना घटाने की मेरी कोई मंशा नहीं है। मुझे अब पक्का विश्वास हो चुका है कि विवाह चाहे हारुन से हुआ या अफ़ज़ल ही क्यों किसी भी रहीम, करीम, जइ, मधु से हुआ होता, मेरी यही हालत होती। हर जगह एक ही तरह की घानी होती, जहाँ एक ही जैसे घिसे-पिटे संस्कार में, कोल्हू के बैल की तरह चक्कर लगाना पड़ता! चक्कर लगाते-लगाते, दम तोड़ देना होता। अफ़ज़ल शायद यह अन्दाज़ा लगा बैठे कि मैं शारीरिक सुख जीने के लिए, उसके दरवाज़े जा भिड़ी थी। मैं सिर्फ देह की भूखी हूँ, और कुछ नहीं। मेरे अन्दर दिल नाम की कोई चीज़ नहीं है। लेकिन...दिल को तो मैं अपनी अनमोल दौलत मानती हैं। यह बात अलग है कि ऐसा सिर्फ मैं मानती हूँ, अन्य कोई नहीं! लोग-बाग़ मेरे जिस्म को ही मेरी एकमात्र दौलत मान बैठे हैं। अगर मेरा ज़रा-सा भी कोई मोल है, वह मेरे जिस्म की वजह से! वैसे यह शरीर भी अब मेरी सम्पत्ति नहीं रहा। यह मेरे पति और पति के नाते-रिश्तेदारों का हो चुका है। अब यह शरीर अफ़ज़ल के हत्थे चढ़ गया, तो अब यह उसकी सम्पत्ति बन जाएगा, सच तो यह है कि इस देह में और जितनी सारी रोग-शोक-व्याधि-बीमारी है, उसे बर्दाश्त करने के लिए मैं हूँ और उसमें जो सुख-शान्ति-सन्तान-सम्भोग जुड़ा हुआ है, वह सव औरतों का है!
सेवती कब चुपचाप चली गई, मैंने ख्याल नहीं किया।
हारुन जब शाम को लौटकर आया, वह मेरे बालों, आँखों, नाक, होंठ, चिबुक ताबड़तोड़ चूमता रहा। वे मेरे मुँह में अंगूर डालता गया और मेरी छाती के लाल-लाल निशान अब तक गए या नहीं, उसने इसकी भी जाँच की।
मेरी छातियों पर अपना मुँह रगड़ते हुए उसने कहा, 'सारे निशान चले गए। अव से तुम्हारा ईलिश मछली खाना नहीं चलेगा। तुम ईलिश खाओगी, तो मेरे बच्चे के बदन पर भी दाने उभर आएँगे।'
हारुन मुर्गी के दस चूजे ले आया है। हर दिन एक चूज़े का सूप पीना है मुझे।
|