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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


मैंने रानू का दाहिना हाथ, अपने हाथ में लेकर, उसकी पतली-पतली उँगलियों से खेलते हुए, मन-ही-मन बुदबुदा उठी-मैं क्या सिर्फ़ अलग गृहस्थी बसाने के सपने देखती थी, रानू? मेरा तो खूबसूरत ज़िन्दगी का भी सपना था। मेरे लिए एक अदद खुला-खुला आकाश होगा। लेकिन अब तो इस पिन्ज़रे में कैदी की ज़िन्दगी गुजारते-गुज़ारते मैं तो यह भी भूल गई हूँ कि आसमान ठीक-ठीक कैसा नज़र आता है।

रानू का बायाँ हाथ, दुबारा मेरे बालों में फिरने लगा।

मेरे बालों में उँगलियाँ फेरते हुए उसने बेहद नरम लहजे में कहा, 'हारुन भाई से कहो न, उन्हें कुछ सपने दे दें!'

'उन्हें, किसे?'

“हुँह, जैसे तुम खुद नहीं समझती! उन्हें...'

कुछेक पलों में ही, मेरी समझ में आ गया कि 'उनसे' से रानु का मतलब हसन से है। मैंने ज़ोर का ठहाका लगाया। हसन, चूँकि रानू का शौहर था, इसलिए पति का नाम लेना, इस घर में वर्जित था। इसलिए रानू को हसन के लिए 'वह' या 'उन्हें' शब्द से काम चलाना पड़ता था। अगले ही पल मैंने अपनी हँसी निग़ल ली, क्योंकि मुझे भी 'हारुन' का नाम लेने की मनाही थी। मैं ही भला रानू से अलग कैसे होने लगी? सासजी को भी 'जैनुल' नाम लेने की सख्त मनाही थी। दोलन के लिए भी ‘अनीस' नाम से पुकारना निषिद्ध था।

'फ़िलहाल विदेश जाना तो हो नहीं रहा है, इसलिए यहीं कोई कारोबार शुरू कर दे-' रानू ने मिनमिनाकर कहा।

'हसन खुद भी तो कह सकता है!'

'वह बेहद चुप्पा इन्सान है, तुमने भी तो देखा है। वह किसी से भी कुछ बताने को तैयार ही नहीं है।'

'.............................'

‘रानू ने दुबारा उसाँस भरकर कहा, 'भई, अपना सगा भाई है। अनीस तो पराया लड़का है। उसे उन्होंने पूरे छः लाख रुपए में डाले और अपना भाई अस्वस्थ पड़ा है...तुम हारुन भाई से आज ही बात करो न, भाभी!'

'तुम्हारे हारुन भाई, घर के हर बन्दे की फ़िक्र करते हैं। उन्हें कुछ कहने या बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती।'

'फिर भी, तुम्हारी बातों का आख़िर कुछ तो दाम है।'

'सुनो, इस गृहस्थी में, मेरा दाम, रत्तीभर भी नहीं है। आजकल हर कोई, यह जो मेरा सेवा-जतन कर रहा है, वह मेरे लिए नहीं, मेरी कोख में जो बच्चा है, उसके लिए है! तुम और मैं...हम सब औरतों की एक जैसी ही नियति है। घर-गृहस्थी में औरत की कोई कीमत नहीं होती-'

'फिर दोलन? उसे इतना रौब किस बात का है?'

रानू की उँगलियाँ, उसे वापस लौटाकर, मैंने आँखें मूंद लीं। आजकल मुझे बेहद नींद आती थी!

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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