उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मेरी आवाज़ में विस्मय झलक उठी, 'यह तुम क्या कहती हो? अनीस क्या यही काम करने के लिए चटगाँव गया था।'
'बे-शक़!'
'हारुन यह बात जानता था?'
'बेशक़ जानता था! गड्डी-गड्डी रुपए कमाने का धन्धा था, समझी?'
'अब दोलन का क्या होगा? दोलन तो जाने कब से चटगाँव जाने की रट लगाए हुए है।
'तुम भी क्या बात करती हो, भाभी! तुम क्या, कोई खबर नहीं रखतीं? दोलन आपा तो जब चटगाँव पहुँची, तो उन्होंने अपनी आँखों से देखा, अनीस इल्ला भाई किसी दूसरी औरत के साथ रहने लगे हैं। दोलन आपा तो किसी रिश्तेदार के घर ठहरी थीं। हारुन भाई ने जब यह खबर सुनी, तो उन्होंने दोलन आपा से फ़ौरन ढाका लौट आने को कहा।
मैं यह सुनकर सन्न रह गई। हारुन ने तो कभी, किसी दिन मुझे यह सब नहीं बताया।
अनीस की खबर सुनकर, मैं चौंक उठी। बेहद शान्त मुद्रा में, मेरे बालों में उँगलियाँ फिराते हुए, रानू दुबारा शुरू हो गई।
'भाभी, तुम लोगों के आसरे-भरोसे हम टुक्कड़ तोड़ते हैं। सारा कुछ हारुन भाई का ही तो दिया हुआ है। वे इन्सान नहीं हैं, भाभी, देवता हैं, समझीं? तुम्हारी जगह अगर मैं होती, तो अकेले अपने शौहर को समूची गिरस्ती का बोझ न ढोने देती। तुम्हें क्या गुस्सा नहीं आता?'
'पता नहीं, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ता-' मैंने उदासीन लहजे में कहा।
'तुम्हारा मन नहीं करता कि तुम अपनी अलग गृहस्थी बसाओ? भई, मेरा तो होता है।'
मैं हँस पड़ी।
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