उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
सेवती ने उसी तरह दबी-दबी आवाज़ में कहा, 'तुम्हें तो पता है कि इन दिनों, अब मैं अलग कमरे में सोती हूँ। उस दिन, काफ़ी रात गए, अचानक कमरे में किसी की आहट सुनकर मैं चौंक उठी। देखा, तो अफ़ज़ल था! पूरी तरह-नंग-धडंग। मेरे बिस्तर पर सोने आया था। मेरे भी कपड़े-लत्ते खींच-खींचकर उतारने की कोशिश की। मैं तुम्हें क्या बताऊँ...' इतना कहते-कहते सेवती बेतरह सिहर उठी, 'छिः छिः छि....मैंने उसे डाँटकर, अपने कमरे से भगा दिया।'
'अरे, ऐसा क्यों किया? तुमने ही तो कहा था कि कभी-कभी तुम्हारा मन करता है कि उसके साथ...?'
मेरी बात पूरी होने से पहले ही, सेवती ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, 'कहना और करना, दो अलग-अलग बातें हैं, झूमुर, समझीं? वह तो मैंने इसलिए कहा, क्योंकि मैं अनवर से गुस्सा थी। कितना भी हो, अफ़ज़ल की भाभी हूँ आख़िर! ज़रा सोचो, भाई की करतूत, अगर अनवर को मालूम हो जाती, तो क्या होता? अपने इस भाई के लिए अनवर ने क्या नहीं किया?' ऑस्ट्रेलिया जाने का सारा इन्तज़ाम, अनवर ने ही तो किया है! वर्ना क्या उसका बूता था कि वह खुद ऑस्ट्रेलिया जा पाता?'
सेवती की बातों के आखिरी जुमलों पर मैंने ध्यान नहीं दिया।
मैंने उसे ख़ामोश करने के लिए, अपनी तरफ़ से सवाल किया, 'उल्टियाँ रोकने के लिए, मुझे क्या, कोई दवा लेनी चाहिए?'
सेवती ने मुझे आश्वस्त किया, 'अगले दिन, वह मेरे लिए कुछेक दवाएँ ले आएगी। साथ में कुछेक आयरन टैब्लेट भी दे देगी। मुझे फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं। वह सब फ्री-सैम्पल में मिल जाएगा।
रात को हारुन के निविड़ आलिंगन में लेटे-लेटे, अचानक मुझे सेवती पर काफ़ी तरस आता रहा। जैसे अफ़ज़ल मेरी बाँहें सहलाता रहता था, ठीक वैसे ही मैं भी अपनी बाँहों पर हाथ फेरती रही। मैं सोचती रही, अफ़ज़ल ठीक इसी तरह सेवती को भी सहला सकता था। सेवती को उसकी छुअन अच्छी नहीं लगती, ऐसा हो ही नहीं सकता था।
अचानक हारुन बोल उठा, 'देखा? देखा न?'
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