उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
'क्यों, जीत गईं न?' सेवती ने सवाल किया।
'हाँ, जीत तो गई। बताओ, मुझे क्या इनाम दोगी?'
'क्या चाहिए?
'हमारी दोस्ती कभी ख़त्म होने मत देना, यही चाहती हूँ।'
सेवती ने सलाह दे डाली, शुरू के तीन महीने, पति से शारीरिक सम्पर्क नहीं चलेगा।
मैं हँस पड़ी, 'पति के साथ शारीरिक सम्पर्क नहीं चलेगा. और किसी मर्द के साथ तो चल सकता है न?'
'हाँ, सो तो चल सकता है! डॉक्टर की तौर पर मैं तुम्हें यह गारंटी दे सकती हूँ कि किसी गैर-मर्द के सहवास से, कोई नुकसान नहीं होगा।'
दोनों ने ज़ोर का ठहाका लगाया।
मैंने सेवती का हाथ, हौले-से अपने हाथ में लेकर पूछा, 'तुम्हारा देवर क्या सच ही जा रहा है?'
अफ़ज़ल का प्रसंग छिड़ते ही, सेवती के माथे पर बल पड़ गए।
उसने लम्बी उसाँस छोड़ते हुए कहा, 'देखो, मैं नहीं चाहती कि वह मेरे घर में रहे-
मैंने दबी आवाज़ में पूछा, 'क्यों?'
सेवती ने फुसफुसाकर जवाब दिया, 'मेरी बर्दाश्त-बाहर है! बिल्कुल बर्दाश्त-बाहर!'
मैंने उसका हाथ दबाते हुए पूछा, 'बर्दाश्त-बाहर क्यों है, भई?'
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