उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
मैं अचकचा गई।
'देखा न, बदन खुजला रहा है न? मैंने मना भी किया था कि ईलिश मत खाओ, बदन में खुजली मच जाएगी; बदन पर लाल-लाल चकत्ते उभर आएँगे।'
मैं हँस पड़ी, 'तुम इतनी फ़िक्र मत करो तो।
हारुन का ध्यान ईलिश मछली में ही फँसाए रखने के लिए, मैं सच ही कुछ देर अपना बदन खुजलाती रही।'
हारुन ने मेरी खुजली की जगहों पर हौले-हौले हाथ फेरते हुए कहा, 'यह अनवर, भलामानस है।'
'क्यों? क्या कहा उसने?'
'बता रहा था कि उसे भी एक बच्चे का बहद चाव है! लेकिन सेवती अभी बच्चे के लिए बिल्कुल राज़ी नहीं है। सेवती अभी पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी। अभी ही अगर बच्चा हो गया, तो उसकी लिखाई-पढ़ाई रह जाएगी, इसलिए...'
"अच्छा ?'
'हाँ, यही बात है!'
जब मेरी आँखें गहरी नींद से बोझिल हो आई, ठीक उसी वक़्त रात की निस्तब्धता को चीरते हुए, कोई महीन-सी रूलाई, मुझे सजग कर गई। इतनी रात गए, कौन रो रहा है? मैं दबे पाँव कमरे से बाहर निकली। रुलाई की आवाज़ दोलन के कमरे से आ रही थी। मैं उसके बिस्तर के करीब जा खड़ी हुई! दोलन तकिए में मुँह गड़ाए रो रही थी!
मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा!
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