उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
किसी दिन उसके कमरे में मेरी तस्वीरें देखकर, वह हसीना सवाल करे, 'यह कौन है?'
अफ़ज़ल बताएगा, 'ऊपर मन्ज़िल की बहू! मैंने उससे बार-बार मिन्नतें की थीं-तुम वहाँ मत जाना, जी! ऊपरी मन्ज़िल के नौजवान से बातचीत मत करना जी!'
'उसके बाद?' वह नीलांजना पूछेगी!
'उसके बाद, ऊपर मन्ज़िल की बहू, ऊपर मन्ज़िल में चली गई। वहाँ पहुँचकर, वह उस नौजवान से भी बातें करने लगी। उस नौजवान ने उसके सारे कपड़े उतारकर, उसे अनावृत्त कर दिया-'
'अब वह औरत कहाँ है?'
'सात समुन्दर, तेरह नदी पार!'
अफ़ज़ल की यादों में, इसी तरह मैं ज़िन्दा रहूँगी। मुमकिन है, अफ़ज़ल किसी दिन मेरा नाम तक भूल जाए। किसी दिन उसके लिए, शायद यह भी गड्गड् हो जाए कि कौन सुरंजना है, कौन झूमुर!
अच्छा, अफ़ज़ल के प्रति क्या मेरे मन में मोह जाग़ उठा है?...मैं अपने से ही सवाल करती हूँ और फिर खुद ही अपने को जवाब दे डालती हूँ-नहीं, ऐसा नहीं है।
उससे, मेरी शायद कभी भेंट न हो। उसने मुझसे कहा था कि हारुन को तलाक़ देकर, मैं उसके साथ भाग चलूँ और उससे निक़ाह कर लूँ। अगर हमारा रिश्ता और ज़्यादा दिन चलता, तो वह और ज़्यादा ज़िद करता। यह तो अच्छा हुआ कि मेरी जरूरत पूरी हो गई। हारुन को तलाक देकर, उसके पास जाने में, ऐसा क्या भला होना था? अफ़ज़ल अगर मुझसे निक़ाह कर भी ले, तो निकाह के बाद, वह भी मुझ पर शक करेगा कि मेरा किसी और मर्द से भी मेल-जोल है। हारुन की बीवी होते हुए, अगर मैं अफ़ज़ल के साथ सेक्स-संपर्क रख सकती हूँ, तो अफ़ज़ल की बीवी होने के बाद भी, ज़रूर मैं किसी तीसरे मर्द से अपना रिश्ता जोड़ लूँगी।
खाना-पीना ख़त्म करने के बाद, हारुन, अनवर को लेकर बैठक-कमरे में चला गया और राजनीति, व्यवसाय वगैरह विषयों पर गपशप करने में मग्न हो गया। सास जी के पनडब्बे से दो बीड़ा पान लेकर, सेवती और मैं अपने सोने के कमरे में चले आए। दोनों जन बिस्तर पर पैर उठाकर, आराम से जम गए और आने वाली सन्तान के बारे में चर्चा छिड़ गई।
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