लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


अचानक मेरी आँखें, सेवती की आँखों से जा मिली। उसने नज़रें झुका लीं। मारे सकपकाहट के, वह एक साथ दो गिलास पानी पी गई। वह बेतरह सकुचा गई।

मेरे होठों पर मन्द-मन्द मुस्कान खिल उठी। कहाँ तो मुझे सकपकाना चाहिए था, मेरी जगह सेवती सकुचा उठी। कहाँ तो मेरी नसों में थरथराहट होनी चाहिए थी। मेरी बजाय सेवती थर्रा उठी।

यह अंदाज़ा लगाना सेवती के वश की बात नहीं थी कि अफ़ज़ल से मेरा किसी तरह का वास्ता है। अन्दर-ही-अन्दर, अचानक मैं ज़रा थराथरा उठी। ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले, अफ़ज़ल कहीं इस खबर का भाँडाफोड़ तो नहीं कर देगा? मेरी कोख भरने की ख़बर, वह ज़रूर सुनेगा। यह ख़बर पाकर, उसे यह ख्याल तो नहीं आएगा कि यह उसका बच्चा है?

शायद नहीं! क्योंकि महीने के जितने दिनों, मेरा-उसका सहवास हुआ था, उसने कहीं ज़्यादा मेरा और हारुन का शारीरिक सम्पर्क हुआ है। इसलिए वह तो यही सोचेगा कि इस बच्चे में उसकी कोई भागीदारी नहीं है।

खाते-खाते ही मुझे किसी गुमनाम ख़त का भी ख्याल आने लगा। कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि अफ़ज़ल, हारुन को एक ख़त लिख भेजे-आपकी बीवी के साथ मेरा अमुक रिश्ता जुड़ा हुआ है। न्ना! ऐसा नहीं हो सकता। मैंने जबरन यह ख्याल, अपने मन से निकाल दिया। इस ख्याल को मैं परवल के साथ हजम कर गई। लेकिन वह ख्याल दुबारा, ईलिश मछली के काँटे की तरह, मेरी जुबान की तालु में चुभ गया। मैंने वह काँटा भी एहतियात से निकालकर, काँटे फेंकने की तश्तरी में फेंक दिया। अब वह काँटा, तश्तरी से समेटकर, कचरे की टोकरी में पहुँच जाएगा।

अफ़ज़ल आपादमस्तक प्रेमी जीव था! जब वह मुझे छूता है, उसके हाथों की उँगलियों में, उँगलियों की पोर-पोर में प्यार बसा होता है। औरत में यह समझने की स्वाभाविक क्षमता होती है कि मर्द के कौन-से स्पर्श में प्यार मौजूद है, कौन से में नहीं! वह स्पर्श चाहे कितना भी एक जैसा हो! कितना भी हौले-से हो! प्यार इन्सान को और ज़्यादा इन्सान बनाता है, जानवर नहीं! जो इन्सान सच्चा प्यार नहीं करता, वही गुमनाम ख़त लिख पाता है, वही आग लगा सकता है, वही ध्वंस के बीज बो सकता है! अफ़ज़ल ने तो सच्चे प्यार से मेरा अंग-अंग छुआ है, मेरी पोर-पोर में प्यार आँका है! सम्भोग के बाद, वह करवट बदलकर सो नहीं गया, मुझे बाँहों में कसकर, आवेग के मारे तिर-तिर सिहरता रहा; प्यार से थरथराता रहा। पता नहीं, शायद इसीलिए मेरा मन बार-बार यही कहता रहा कि वह और चाहे जो करे, मग़र जिसे उसने प्यार किया है, प्यार में जिसकी तस्वीरें बनाई हैं, उसका वह कोई नुकसान नहीं कर सकता। मुमकिन है, ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न या सिडनी में किसी दिन, किसी बाग में उसकी किसी सुनहरे बाल और नीली आँखों वाली किसी रूपसी से मुलाकात हो जाए; मुमकिन है वह उसे प्यार कर बैठे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book