उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
इसके बावजूद मैं दुविधा में पड़ी रही, सुभाष ही मुझे खींच ले गया। हमें वारी में छोड़कर, वह चला गया। गाड़ी में जो बातचीत हुई, वह सुभाष के साथ ही हुई! ढाका शहर में मच्छरों का उत्पात, पुराने ढाका में लोगों और सवारियों की भीड़भाड़ वगैरह का जिक्र छिड़ा रहा।
मुझे घर के सामने उतारते हुए उसने कहा, 'आपका गाना मुझे और सुनना है.....'
“कहाँ, कब वह मेरा गाना सुनेगा, यह उसने साफ़-साफ़ नहीं कहा। बस, इतने-से परिचय के दम पर कोई किसी को उसके घर फोन भी खटखटा सकता है, यह मैं नहीं जानती थी। घर का पता-ठिकाना मिल जाए, तो फोन नम्बर हासिल करने में ज़्यादा देर नहीं लगती। मैंने भी यह पूछने की ज़रूरत नहीं समझी कि उसने मेरा फोन नम्बर कहाँ से और क्यों जुटा लिया।
पहले दिन जब फोन आया, तो मैंने यह कहकर टाल दिया कि मैं व्यस्त हूँ, बात करने की बिल्कुल फुर्सत नहीं है। लेकिन उसने अगले दिन फिर फोन किया उसके अगले दिन भी!
'क्या बात है, बताइए तो?'
'आपको परेशान कर रहा हूँ?'
असल में, मैं परेशान नहीं हो रही थी, लेकिन पूरा इत्मीनान भी नहीं हो रहा था। जिसके साथ न जान, न पहचान, उससे मैं ठीकठाक हूँ। आप कैसे हैं? वगैरह बतकही करने के अलावा मेरे तरफ़ से बात आगे ही नहीं बढ़ती थी, हालाँकि हारुन अपनी जिंदगी के तमाम किस्से-कहानियाँ सुनाता रहा। यही सब सुनते-सुनते, मुझे पता चला कि हारुन इन्जीनियर है और अब उसने अपना कारोबार शुरू कर दिया है। उसने जेनरेटर तैयार करने का कारखाना खोला है और मोती झील में उसका ऑफिस है। उसका घर धानमंडी में है और घर में अम्मी-अब्बू के अलावा भाई-बहन समेत, उसकी खुशहाल गृहस्थी है।
'आपसे एक गाना सुनना बाकी है। मेरा आप.पर उधार है।' 'क्यों?' 'वह जो उस दिन आपलोगों को अपनी गाड़ी से घर छोड़ा था...'
'अच्छा, तो आप गाड़ी का किराया वसूल कर रहे हैं...' उस छोर पर, हारुन ने ज़ोर का ठहाका लगाया।
'पहुँचाने के लिए आप ही ज़्यादा उतावले थे, याद है?' मैंने इसमें एक वाक्य और जोड़ दिया, वैसे किसी को ख़ुद आगे बढ़कर मदद की जाए, तो निःस्वार्थ भाव से ही करना चाहिए।'
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