उपन्यास >> शोध शोधतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
अफ़ज़ल की नाक दबाते हुए, मैंने कहा, 'तुम मेरे पतिदेव को नहीं जानते। अगर उसे पता चल जाए न, तो सबसे पहले, वह तुम्हारा खून करेगा, उसके बाद ही मेरा! तुम कभी भूलकर भी, उस घर पर नज़र मत डालना! न कभी कोई ख़त भेजना, न फोन करना-'
'तुम्हारे बिना...लगता है, मैं दीवाना...पागल हो गया हूँ।
'पागल तो तुम्हारे लिए मैं भी रहती हूँ, अफ़ज़ल! तुम यह सब कुछ नहीं समझोगे-'
'एइ, चलो भाग चलें!' अफ़ज़ल ने मेरा हाथ पकड़कर खींचा।
'भागकर जाएँगे कहाँ?'
'दूर...बहुत दूर...! हम ऑस्ट्रेलिया चले जाएँगे। मेरी एक बहन रहती है वहाँ।'
'लेकिन, मैं तो ऊपरवालों के यहाँ गिरवी पड़ी हूँ-'
'सब छोड़-छाड़कर, चलो, चल दें।
'मैं चली गई, तो हारुन का क्या होगा?' मैंने हँसकर पूछा।
"तुम उसे लेकर क्यों परेशान हो?'
'मेरे अलावा, उसके लिए परेशान होने वाला, और कौन है, बताओ?'
'उफ्! झूमुर! मैं यह बात तुम्हें समझा क्यों नहीं पाता कि...? अच्छा, तुम क्या मुझे प्यार नहीं करती?'
'तुम्हें क्या लगता है?'
'कभी लगता है, तुम मुझे ही प्यार करती हो, कभी लगता है, तुम मुझे बिल्कुल प्यार नहीं करतीं। अच्छा, तुम कहीं उस हारुन को ही तो प्यार नहीं करतीं? मुझे सच-सच कहो तो!'
'हमने प्यार करके ही शादी की है।'
'वह इन्सान तुम्हें ज़रूर शारीरिक सुख नहीं दे पाता?'
'हाँ, बीच में वह नहीं दे पाता था, मगर अब देता है!'
'शायद इसीलिए तुम इतने दिनों से मेरे पास नहीं आईं!'
मैंने ज़ोर का ठहाका लगाया।
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